पाठ - 4
हम राज्य लिए मरते हैं (मैथिलीशरण गुप्त)
हम राज्य लिए मरते हैं।
सच्चा राज्य परन्तु हमारे कर्षक ही करते हैं।
जिनके खेतों में है अन्न,
कौन अधिक उनसे सम्पन्न ?
पत्नी-सहित विचरते हैं वे, भव वैभव भरते हैं,
हम राज्य लिए मरते हैं।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'हिंदी पुस्तक-10' में संकलित आधुनिक काल के राष्ट्रकवि 'मैथिलीशरण गुप्त' द्वारा रचित महाकाव्य 'साकेत' के नवम् सर्ग 'हम राज्य लिए मरते हैं' से अवतरित हैं
। प्रस्तुत कविता में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला किसानों के सादे और शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है।
व्याख्या:- उर्मिला कहती है कि हम राज परिवार के लोग राज्य कलह के कारण दुःखी हैं। जबकि वास्तव में सच्चा राज्य हमारे किसान करते हैं। वे स्वयं अपने खेतों में अन्न उत्पन्न करते हैं। इसलिए किसानों से धनवान कोई नहीं। वे अपनी पत्नी संग जीवन यापन करते हैं जबकि हम गृहक्लेश के कारण वियोग सह रहे हैं। अतः किसान हम से अधिक सुखी हैं।
वे गोधन के धनी उदार,
उनको सुलभ सुधा की धार,
सहनशीलता के आगर वे श्रम सागर तरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
व्याख्या - उर्मिला किसानों की प्रशंसा करते हुए कहती है कि किसानों के पास अमृत की धारा के समान गाय का दूध सहज ही मिल जाता है। किसान सहनशीलता की मूर्ति हैं। वे सदैव परिश्रम करने में विश्वास रखते हैं जबकि हम राज परिवार के सदस्य राज्य कलह के कारण दुःखी है।
यदि वे करें, उचित है गर्व,
बात बात में उत्सव-पर्व,
हम से प्रहरी रक्षक जिनके, वे किससे डरते हैं ?
हम राज्य लिए मरते हैं।
व्याख्या :- उर्मिला आगे कहती है कि यदि किसान अपने ऊपर गर्व या मान करते हैं तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। उनका ऐसा सोचना बिल्कुल उचित है। वह छोटी-छोटी बातों में खुशी का मौका तलाश लेते हैं। वह प्रतिदिन उत्सव या त्योहार मनाते हैं। जब हम जैसे लोग उनके रक्षक हैं तो उन्हें किसी से भयभीत होने की जरूरत नहीं। जबकि हम राज्य के लिए मरते हैं।
करके मीन मेख सब ओर,
किया करें बुध वाद कठोर,
शाखामयी बुद्धि तजकर वे मूल धर्म धरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
व्याख्या :- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला किसानों के सरल व सादे
जीवन की ओर संकेत करते हुए कहती है कि किसान व्यर्थ के वाद-विवाद को त्याग कर धर्म
के मूल सिद्धांतों को अपनाते हैं। जबकि विद्वान लोग छोटी-छोटी बात पर बहस करते हैं।
जबकि हम राजवंशी राज्य कलह के कारण दुःखी हैं।
होते कहीं वही हम लोग,
कौन भोगता फिर ये भोग ?
उन्हीं अन्नदाताओं के सुख आज दुःख हरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
'साकेत' के नवम् सर्ग 'हम राज्य लिए मरते हैं' से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला किसानों के सादे और शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है।
व्याख्या :- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला के मन की पीड़ा उजागर होती है। उर्मिला कहती है कि अगर हम राजवंशी न होकर किसान होते तो हमें राज्य कलह के कारण दुः ख न सहना पड़ता अर्थात् हम पति-पत्नी में भी वियोग न होता ।यदि हम भी किसान ही होते तो राज्य कलह के कष्ट हमें न भोगने पड़ते । उनके सुखों को देखकर हमारे दुःख दूर हो जाते है हैं। लेकिन हम फिर भी राज्य कलह के कारण दुःख भोगते हैं।
शब्दार्थ -
मरते हैं = दुःखी होते हैं; उदार = दानी; उत्सव = समारोह; सम्पन्न = धनी; सुधा = गाय का अमृत जैसा दूध; पर्व = त्योहार; भव वैभव = संसार के ऐश्वर्य; आगर =
खजाना; प्रहरी = पहरेदार; कर्षक = किसान; श्रम = मेहनत; मीन मेख = दोष निकालना, तर्क वितर्क करना; गोधन = गाय-रूपी धन; गर्व = अभिमान; बुध =
बुद्धिमान; वाद = वाद विवाद; तजकर = छोड़कर; भोग = सुख; अन्नदाताओं = अन्न देने वाले किसानों; हरते
हैं = दूर करते हैं।
अभ्यास
(क) विषय - बोध
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(1) प्रस्तुत गीत में उर्मिला किसकी प्रशंसा कर रही है?
उत्तर- प्रस्तुत गीत में उर्मिला किसानों की प्रशंसा कर रही है।
(2) किसान संसार को समृद्ध कैसे बनाते हैं?
उत्तर- किसान अन्न पैदा करके संसार को समृद्ध बनाते हैं।
(3) किसान किस प्रकार परिश्रम
रूपी समुद्र को धीरज से तैर कर पार करते हैं?
उत्तर- किसान सहनशील होने के कारण अपने परिश्रम और धैर्य से परिश्रम रूपी समुद्र को तैर कर पार करते हैं।
(4) किसानों का अपने ऊपर गर्व करना कैसे उचित है?
उत्तर- किसानों का अपने ऊपर गर्व करना esilE उचित है क्योंकि वे समस्त संसार के अन्नदाता होते हैं।
(5) किसान व्यर्थ के वाद-विवाद को छोड़कर किस धर्म का पालन करते हैं?
उत्तर- किसान व्यर्थ के वाद-विवाद को छोड़कर धर्म की मूल बात का पालन करते हैं।
(6) "हम राज्य लिए मरते हैं" में उर्मिला राज्य के कारण होने वाली किस कलह की बात कहना चाहती है?
उत्तर- "हम राज्य लिए मरते हैं" में उर्मिला राज्य के लिए श्री राम को बनवास दिए जाने तथा भरत को राज्य देने से उत्पन्न कलह की बात कहना चाहती है।
(ख) भाषा - बोध
1) निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें :
संपन्न -
विपन्न सुलभ -
दुर्लभ
धनी -
निर्धन उचित -
अनुचित
उदार -
अनुदार कठोर -
कोमल
रक्षक -
भक्षक धर्म -
अधर्म
2) निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें :
पत्नी - अर्धांगिनी, भार्या
कर्षक - किसान, हलधर
सागर - समुद्र, सिंधु
उत्सव - त्योहार, पर्व
3) निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखकर वाक्य बनाएं :
शब्द अर्थ वाक्य
अन्न अनाज किसान समस्त संसार का अन्नदाता है।
अन्य दूसरा मुझे कोई अन्य सूट दिखाओ।
उदार दयालु सोहन बहुत ही उदार चित्त व्यक्ति है।
उधार कर्ज़ मैंने रोहन से pcws {pXy उधार लिए।
लेखन - विनोद कुमार (हिंदी शिक्षक)स.ह.स.बुल्लेपुर,लुधियाना
गुरप्रीत कौर(हिंदी शिक्षिका) स ह स लापरा लुधियाना
कुमकुम(हिंदी शिक्षिका) स ह स शाहपुर रोड़ लुधियाना
संशोधक – डॉ॰ राजन (हिंदी शिक्षक)लोहारका कलां, अमृतसर