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आत्मनियंत्रण की कला

 


आत्मनियंत्रण की कला

एक लड़का अत्यंत जिज्ञासु था | जहाँ भी उसे कोई नई चीज सीखने को मिलती, वह उसे सीखने के लिए तत्पर रहता था | उसने एक तीर बनाने वाले से तीर बनाना सीखा, नाव बनाने वाले से नाव बनाना सीखा, मकान बनाने वाले से मकान बनाना सीखा, बाँसुरी बनाने वाले से बाँसुरी बनाना सीखा |

                                     इस प्रकार वह बहुत सारे कलाओं में प्रवीण हो गया मगर उसमें अहंकार आ गया | वह अपने परिजनों व मित्रगणों से कहता – इस पूरी दुनिया में मुझ जैसा प्रतिभावान कोई नहीं है |

एक बार शहर में गौतम बुद्ध का आगमन हुआ | उन्होंने जब उस लड़के की कला और अहंकार दोनों के विषय में सुना, तो मन में सोचा कि इस लड़के को एक ऐसी कला सिखानी चाहिए, जो अब तक की सीखी कलाओं से बड़ी हो |

                    वे भिक्षा का पात्र लेकर उसके पास गए | लड़के ने पूछा – आप कौन हैं ?  बुद्ध बोले – मैं अपने शरीर को नियंत्रण में रखने वाला एक इंसान हूँ | लड़के ने उन्हें अपनी बात स्पष्ट करने के लिए कहा |

                                                   तब उन्होंने कहा – जो तीर चलाना जानता है, वह तीर चलाता है | जो नाव चलाना जानता है, वह नाव चलाता है | जो मकान बनाना जानता है, वह मकान बनाता है, मगर जो ज्ञानी है, वह स्वयं पर शासन करता है |

                                         लड़के ने पूछा – वह कैसे ? बुद्ध ने उत्तर दिया – यदि कोई उसकी प्रशंसा करता है, तो वह अभिमान से फूलकर खुश नहीं हो जाता और यदि कोई उसकी निंदा करता है, तो भी वह शांत बना रहता है और ऐसा व्यक्ति हीं सदैव आनंद से भरा रहता है |

कहानी से सीख – आत्मनियंत्रण जब सध जाता है, तो समभाव आता है और यहीं समभाव अनुकूल – प्रतिकूल दोनों स्थितियों में हमें प्रसन्न रखता है |लड़का जान गया कि सबसे बड़ी कला स्वयं को वश में रखना है |