कारक
कारक
का शाब्दिक अर्थ है - 'क्रिया को करने वाला' अर्थात् क्रिया को पूरी करने में किसी-न-किसी भूमिका
को निभाने वाला । क्रिया को संपन्न अर्थात् पूरा करने में जो संज्ञा आदि शब्द
संलग्न होते हैं, वे अपनी अलग-अलग प्रकार
की भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं ।
नीचे लिखे वाक्यों को
ध्यानपूर्वक पढ़ो :
1. राहुल ने केला खाया ।
2. रवि ने सचिन को पीटा ।
3. गरिमा चाकू से फल काटती है ।
4. मोहन बच्चों के लिए खिलौने लाया ।
5. पेड़ से पत्ते गिर रहे हैं ।
6. पुस्तक मेज पर रखी है ।
उपर्युक्त वाक्यों में -
वाक्य (1) में 'खाना' क्रिया है। किसने खाया ? राहुल ने ।
वाक्य (2) में रवि ने किसको पीटा ? सचिन को ।
वाक्य (3) में गरिमा ने फल किससे काटा ? चाकू से ।
वाक्य (4) में मोहन किसके लिए खिलौने लाया ? बच्चों के लिए ।
वाक्य (5) में पत्ते कहाँ से गिरे ? पेड़ से ।
वाक्य (6) में पुस्तक कहाँ रखी है? मेज़ पर ।
इन सभी वाक्यों में
संज्ञा-पदों का क्रिया-पद के साथ एक निश्चित संबंध होता है ।
अतः किसी वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम
पदों का उस वाक्य की क्रिया से जो संबंध होता है, उसे कारक कहते हैं ।
इन
संज्ञाओं का क्रियाओं से संबंध को बताने के लिए ने, को, से, में, पर, के लिए आदि चिह्नों का
प्रयोग किया जाता है । इन चिह्नों को 'कारक चिह्न' कहते हैं । हिन्दी में ये
कारक चिह्न 'परसर्ग' कहलाते हैं ।
कभी-कभी वाक्यों में कुछ
शब्दों के साथ परसगों का प्रयोग नहीं होता है । जैसे-राम गया ।
कारक
वह व्याकरणिक कोटि है जो यह स्पष्ट करती है कि संज्ञा आदि शब्द वाक्य में स्थित
क्रिया के साथ किस प्रकार की भूमिका से संबद्ध हैं ।
कारक
के भेद – कारक के मुख्य भेद आठ हैं
:
1. कर्ता कारक
2. कर्म कारक
3. करण कारक
4. संप्रदान कारक
5. अपादान कारक
6. अधिकरण कारक
7. संबंध कारक
8. संबोधन कारक
इनका विवरण इस प्रकार है:
|
कारक |
चिह्न |
अर्थ |
1 |
कर्ता कारक |
ने |
काम करने वाला |
2 |
कर्म कारक |
को |
जिस पर काम का प्रभाव
पड़े |
3 |
करण कारक |
से |
जिसके द्वारा कर्ता काम
करे |
4 |
सम्प्रदान कारक |
को,के लिए |
जिसके लिए क्रिया की
जाए |
5 |
अपादान कारक |
से(अलग होना) |
जिससे अलगाव हो |
6 |
संबंध कारक |
का,की,के,रा,री,रे |
अन्य पदों से संबंध |
7 |
अधिकरण कारक |
में,पर |
क्रिया का आधार |
8 |
संबोधन कारक |
हे ! अरे ! |
किसी को पुकारना,बुलाना |
1. कर्ता कारक [ने]: किसी क्रिया को करने
वाला ही कर्ता है । प्रत्येक क्रिया के साथ कर्ता अवश्य होता है, बिना कर्ता के क्रिया हो ही नहीं सकती । जैसे -
1. गीता खाना पका रही है ।
2. नीहारिका ने कहानी लिखी ।
3. राम चला गया ।
इन
वाक्यों में गीता, नीहारिका और राम कर्ता
कारक हैं । जब सकर्मक क्रिया भूतकाल में हो तो कर्ता कारक के साथ 'ने' परसर्ग का प्रयोग होता है
।
कभी-कभी
कर्ता के साथ 'को' कारक चिह्न का भी प्रयोग
होता है ; जैसे -
मोहन
को मुंबई जाना है ।
निम्नलिखित स्थितियों में
'ने' परसर्ग (कारक चिहन) का
प्रयोग नहीं होता -
1. वर्तमान काल की सकर्मक क्रिया के साथ - मैं पुस्तक पढ़ता हूँ ।
2. भूतकाल की अकर्मक क्रिया के साथ - वह चला गया ।
2. कर्म कारक [ को]: वाक्य में जिस
संज्ञा/सर्वनाम पर क्रिया का फल या प्रभाव पड़ता है और जिसकी अपेक्षा क्रिया करती
है, उसे कर्म कहते हैं ।
प्रायः
कर्म की पहचान क्रिया पर 'क्या', 'किसे' प्रश्न करके की जाती है। इसके उत्तर में जो संज्ञा प्राप्त होती है, वहीं कर्म होती है ।
कर्म
कारक के साथ 'को' परसर्ग का प्रयोग होता है; परंतु कई अवस्थाओं में इसका प्रयोग नहीं भी होता है ।
'को' परसर्ग का प्रयोग प्रायः
प्राणिवाचक संज्ञा के साथ होता है । जैसे-
1. राजेश ने मोहन को पढ़ाया ।
किसको
पढ़ाया ? (परसर्ग को) मोहन (कर्म), परसर्ग-को ।
2. माँ ने बच्चे को सुलाया ।
किसको
सुलाया ? (परसर्ग को) बच्चे (कर्म), परसर्ग-को ।
3. वह पुस्तक पढ़ रहा है ?
क्या
पढ़ रहा है ? - पुस्तक (कर्म), परसर्ग को, परसर्ग - कोई नहीं । जब वाक्य में दो कर्म हों (मुख्य और गौण), तब 'को' का प्रयोग गौण कर्म के साथ होता है; जैसे मैंने राम को पत्र लिखा । (राम गौण कर्म, पत्र मुख्य कर्म) ।
3. करण कारक [ से, के द्वारा] : जिसकी सहायता से कोई
कार्य संपन्न हो, वह संज्ञा/सर्वनाम पद करण
कारक होता है । करण कारक का विभक्ति-चिह्न (परसर्ग) है से, के द्वारा । जैसे -
1. मैं पैन से चिट्ठी लिख रहा हूँ ।
2. राधा ने चाकू से छेद किया ।
3. उसे पत्र के द्वारा समाचार मिला ।
4. संप्रदान कारक [ को, के लिए] : संज्ञा या सर्वनाम के उस
रूप को संप्रदान कहते हैं जिसके लिए कर्ता द्वारा कुछ किया जाए या उसे कुछ दिया
जाए । संप्रदान कारक का चिह्न को, के लिए है । जैसे -
1. मोहन ने गरीबों को धन दिया ।
2. मैं आपके लिए दवा लाया हूँ ।
3. वह यह मिठाई बहन के लिए लाया था ।
'को' परसर्ग का प्रयोग कर्म
कारक और संप्रदान कारक दोनों में होता है। कर्म कारक में 'को' To के अर्थ में होता है, जबकि संप्रदान कारक में 'को' For के अर्थ में। जैसे-
1.
वह मोहन को पत्र लिखेगा । (कर्म कारक)
2.
वह दीन-दुखियों को कपड़े देता है । (संप्रदान कारक)
5.अपादान कारक [से] :जिस पद से अलग होने या
निकलने का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं
। इसका परसर्ग 'से' है । जैसे -
1. गंगा हिमालय से निकलती है ।
2. पेड़ से पत्ते गिरते हैं ।
3. मोहन घोड़े से गिर पड़ा ।
ध्यान दें: 'से' परसर्ग का प्रयोग करण
कारक और अपादान कारक दोनों में होता है, पर दोनों स्थितियों में अंतर है । करण कारक में 'से' सहायक साधन के रूप में (with) तथा अपादान कारक में यह अलग (depart) होने का सूचक है ।
6. अधिकरण कारक [में, पर] : जिस संज्ञा/सर्वनाम पद
से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं
। इससे क्रिया के स्थान, काल, अवसर आदि का ज्ञान होता है । अधिकरण कारक के परसर्ग
हैं- में, पर । जैसे -
1. थैले में फल हैं ।
2. पुस्तक मेज पर रखी है ।
3. माताजी घर में हैं ।
कभी-कभी अधिकरण कारक का
परसर्ग लुप्त भी हो जाता है; जैसे -
1. बगीचे के किनारे छायादार वृक्ष लगे
हैं । (किनारे पर)
2. बच्चे घर हैं ? (घर पर या घर में)
कभी-कभी अधिकरण कारक के
परसर्ग के बाद दूसरे कारक का परसर्ग भी आ जाता है, जैसे -
1. पुस्तक में से पढ़ लो ।
2. वह पेड़ पर से उत्तर रहा था ।
7. संबंध
कारक [ का, के, की/रा, रे, री] : संज्ञा या सर्वनाम के
जिस रूप से एक वस्तु व्यक्ति का संबंध दूसरी वस्तु व्यक्ति के साथ जाना जाए, उसे
संबंध कारक कहते हैं । इसमें का, के, को,
प, रे, री परसगों का
प्रयोग किया जाता है । जैसे -
1. यह राम का भाई है ।
2. वह शशि की बहन है ।
3. मेरा भाई, तेरी
बहन आदि ।
8. संबोधन
कारक [हे, अरे, ओ] : यह ध्यान आकर्षित करते
समय अथवा चेतावनी देते समय प्रयुक्त होता है । शब्द के पूर्व प्रायः विस्मयादिबोधक
अव्यय [हे! अरे!] आदि लगते हैं । जैसे -
1. अरे मोहन ! यहाँ आना ।
2. सज्जनो और देवियो ! चुप हो जाओ ।