पाठ - 01 (तुलसीदास दोहावली)
1) श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ।। 1
व्याख्या - तुलसीदास जी लिखते हैं कि अपने गुरु जी के कमल रूपी सुंदर चरणों की धूल से मैं अपने मन के दर्पण को साफ़ करता हूँ और तत्पश्चात् प्रभु राम जी का निर्मल यशगान करता हूँ । ऐसा करने से चारों फल - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते हैं।
2) राम नाम मनी दीप धरु, जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहरु हुँ, जौ चाहसि उजियार ।। 2
व्याख्या - तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि मनुष्य अपने मन के भीतर और बाहर दोनों स्थानों पर उजाला करना चाहता है तो राम नाम रूपी मणियों के दीपक को हृदय में धारण करना चाहिए । ऐसा करने से अज्ञान रूपी अन्धकार नष्ट हो जाता है और ज्ञान रूपी उजाला प्राप्त हो जाता है।
3) जड़ चेतन गुन दोषभय, बिस्व कीन्ह करतार ।
संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि बारि विकार ।। 3
व्याख्या - तुलसीदास जी लिखते हैं कि ईश्वर ने इस समस्त जड़-चेतन संसार को गुण और दोष से युक्त बनाया है लेकिन संतों में हंस के समान नीर-क्षीर विवेक होता है । इसी विवेक का प्रयोग करके संत दोष रूपी जल को त्याग कर गुण रूपी दूध को ग्रहण करते हैं ।
4) प्रभु तरुवर कपि डार पर, ते किए आपु समान ।
तुलसी कहुँ न राम से, साहिब सील निधान ।। 4
व्याख्या - कवि कहता है कि प्रभु श्रीराम जी बहुत महान और उदार हैं । भगवान श्रीराम स्वयं तो वृक्षों के नीचे रहते थे और बन्दर पेड़ों की डालियों पर रहते थे परन्तु फिर भी ऐसे बंदरों को भी उन्होंने अपने समान बना लिया । ऐसे उदार, शीलनिधान प्रभु श्रीराम जैसे स्वामी दुनिया में अन्यत्र कोई नहीं हैं ।
5) तुलसी ममता राम सो समता सब संसार ।
राग न रोष न दोष दुःख, दास भए भव पार ।। 5
व्याख्या - तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम में ममता रखनी चाहिए और संसार के सभी प्राणियों के प्रति समता का भाव रखना चाहिए । इससे मनुष्य राग, रोष, दोष, दुःख आदि से मुक्त हो जाता है । इस प्रकार श्रीराम का दास होने के कारण व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है ।
6) गिरिजा संत समागम सम, न लाभ कछु आन ।
बिनु हरि कृपा न होइ सो, गावहिं वेद पुरान ।। 6
व्याख्या - तुलसीदास जी लिखते हैं कि शिवजी पार्वती जी को संतों के सम्मेलन की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे पार्वती ! संतों के साथ बैठकर उनके विचार सुनने से ज़्यादा लाभकारी कुछ भी नहीं है और परमात्मा की कृपा के बिना संतों की संगति प्राप्त नहीं होती, ऐसा वेद-पुराणों में कहा गया है।
7) पर सुख संपति देखि सुनि, जरहिं जे जड़ बिनु आगि।
तुलसी तिन के भाग ते, चलै भलाई भागि ।। 7
व्याख्या - तुलसीदास लिखते हैं कि जो मूर्ख लोग दूसरों के सुख और सम्पत्ति को देखकर ईर्ष्या से जलते रहते हैं , उन लोगों के भाग्य से भलाई स्वयं ही भाग जाती है । तात्पर्य यह है कि दूसरों की प्रगति को देखकर जलने वालों का कभी भी भला नहीं होता।
8)
साहब ते सेवक बड़ो, जो निज धरम सुजान ।
राम बाँध उतरै उदधि, लांघि गए हनुमान ॥ 8
व्याख्या - तुलसीदास लिखते हैं कि वह सेवक तो स्वामी से भी बड़ा होता है जो अपने धर्म का पालन सच्चे मन से करता है। इसी बात को स्पष्ट करते हुए कवि कहते हैं कि स्वामी श्रीराम तो सागर पर पुल बंधने के बाद ही समुद्र पार कर सके परन्तु उनके सेवक हनुमान तो बिना पुल के ही समुद्र को पार गए ।
9) सचिव वैद गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भयु आस ।
राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ बेगिही नास ।। 9
व्याख्या - कवि कहते हैं कि यदि किसी राजा का मंत्री, वैद्य और गुरु - ये तीनों राज-भय से अथवा किसी लोभ-लालच से उसकी बात निर्विरोध मान लेते हैं अर्थात् उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं तो उसका राज्य , धर्म और शरीर तीनों शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं । इस लिए ऐसे चापलूस सलाहकारों से बचना चाहिए ।
10)
बिनु बिस्वास भगति नहिं, तेहि विनु द्रवहिं न राम ।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ, जीवन लह विश्राम ।। 10
व्याख्या - तुलसीदास लिखते हैं कि सच्चा भक्त भगवान पर अटूट विश्वास रखता है । बिना भगवान पर विश्वास किये प्रभु-कृपा प्राप्त करना संभव ही नहीं है । भगवान राम की कृपा के बिना स्वप्न में भी चैन नहीं मिलता । इस लिए प्रभु श्रीराम पर अखंड विश्वास रखते हुए भक्ति करना ही सब प्रकार से लाभकारी होता है ।
अभ्यास
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए –
1. तुलसीदास जी के अनुसार राम जी के निर्मल यश का गान करने से कौन-से चार फल मिलते हैं ?
उत्तर - भगवान राम जी के निर्मल यश का गान करने से - धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष चार फल प्राप्त होते हैं ।
2. मन के भीतर और बाहर उजाला करने के लिए तुलसी कौन-सा दीपक हृदय में रखने की बात करते हैं ?
उत्तर - मन के भीतर और बाहर उजाला करने के लिए तुलसी राम-नाम रूपी मणियों का दीपक हृदय में रखने की बात करते हैं ।
3. संत किसकी भांति नीर-क्षीर विवेक करते हैं ?
उत्तर - संत हंस की भांति नीर-क्षीर विवेक करते हैं ।
4.तुलसीदास के अनुसार भवसागर को कैसे पार किया जा सकता है?
उत्तर - भगवान राम जी से सच्चा प्रेम करके भवसागर को पार किया जा सकता है ।
5. जो व्यक्ति दूसरों के सुख और समृद्धि को देखकर ईर्ष्या से जलता है ,उसे भाग्य में क्या मिलता है ?
उत्तर - जो व्यक्ति दूसरों के सुख और समृद्धि को देखकर ईर्ष्या से जलता है, उसके भाग्य से भलाई और खुशहाली भाग जाती है ।
6. रामभक्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास किसकी आवश्यकता बतलाते हैं ?
उत्तर - रामभक्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास सच्चे और अटूट विश्वास की आवश्यकता बतलाते हैं ।
भाषा-बोध
विपरीत शब्द लिखें :-
1.सम्पत्ति –विपत्ति 3.भलाई –बुराई
2.सेवक – स्वामी 4.लाभ - हानि
(2) भाववाचक संज्ञा बनाएं :-
1. दास – दासता 3. निज – निजता
2. गुरु – गुरुत्व 4. जड़ – जड़ता
(3) विशेषण बनाएं :-
1. धर्म – धार्मिक 3. मन – मानसिक
2. भय – भयानक 4. दोष – दोषी
लेखन - विनोद कुमार (हिंदी शिक्षक)स.ह.स.बुल्लेपुर,लुधियाना
गुरप्रीत कौर(हिंदी शिक्षिका) स ह स लापरा लुधियाना
हरदमनदीप सिंह (हिंदी शिक्षक)स.ह.स.घुलाल लुधियाना
संशोधक – डॉ॰ राजन (हिंदी शिक्षक)लोहारका
कलां, अमृतसर