पाठ - 2
सूरदास के पद
सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
जसोदा हरि पालने झुलावै ।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछू गावै।
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै ।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकों कान्ह बुलावै।
कबहुँक पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै ।
सोवत जानि मौन व्है रहि रहि, करि करि सैन बतावै।
इहिं अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नंद भामिनि पावै ।।
व्याख्या - प्रस्तुत पद में सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा माता श्री कृष्ण को पालने में झूला रही है। वह झूले को हिलाती है, पुत्र को दुलाती-पुचकारती है और जो कुछ मन में आता है, गाती है। और गाते हुए कहती है कि हे नींद ! तू मेरे कन्हैया को आकर क्यों नहीं सुलाती है? तू क्यों जल्दी नहीं आती है। तुम्हें कन्हैया बुला रहा है। कभी कृष्ण पलकों को बंद कर लेते हैं और कभी होठों को फड़काते हैं। उन्हें सोते हुए जानकर यशोदा मौन हो जाती है और इशारे से दूसरों को बातें समझाती है। इसी बीच श्री कृष्ण व्याकुल होकर उठते हैं और यशोदा फिर से मधुर स्वर में गाने लगती है। सूरदास जी कहते हैं कि जो सुख नंद की पत्नी यशोदा को प्राप्त हो रहा है वह देवता और मुनियों को भी प्राप्त नहीं होता।
2. कहन लागे मोहन मैया मैया।
नंद महर सों बाबा बाबा, अरु हलधर सों भैया।
ऊंचे चढ़ि चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया।
दूरि खेलन जनि जाहु लला रे, मारैगी काहु की गैया।
गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर घर बजति बधैया।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों, चरननि की बलि जैया ।।
व्याख्या - प्रस्तुत पद में सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण अब बड़े हो गए हैं। वे यशोदा माता को मैया-मैया कहकर पुकारने लगे हैं। और नंद मुखिया को बाबा-बाबा कहकर बुलाने लगे हैं और अपने बड़े भाई बलराम को भैया-भैया कहने लगे हैं। बाल कृष्ण को बाहर खेलने जाता देखकर यशोदा छत पर चढ़कर श्री कृष्ण का नाम लेकर पुकारती हुई कहती है कि हे लाल! तुम दूर मत खेलने जाना। किसी की गाय तुम्हें मार देगी। गोपियॉं श्री कृष्ण के रंग रूप पर प्रसन्न होती हैं और घर-घर में बधाइयॉं दी जाती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि हे प्रभु, तुम्हारे दर्शन के लिए, मैं तुम्हारे चरणों पर बलिहारी जाता हूॅं।
03 मैया कबहुं बढ़ेगी चोटी।
किती बेर मोहि दूध पियत भई, यह अजहूं है छोटी॥
तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुईं लोटी।
काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।
सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी॥
प्रसंग: प्रस्तुत पद सूरदास जी द्वारा रचित 'सूरदास के पद' से लिया गया है। यहाँ सूरदास ने कृष्ण जी के बाल सुलभ रूप का अनोखा वर्णन करते हुए कृष्ण द्वारा यशोदा को उलाहना देने की बात की है।
व्याख्या: सूरदास जी द्वारा रचित इस पद में श्री कृष्ण जी मैया यशोदा से कहते हैं कि मैया! मेरी चोटी कब बढ़ेगी ? मुझे दूध पीते कितनी देर हो गयी पर यह तो अब भी छोटी ही है। माँ, तुम तो कहती हो कि मेरी यह चोटी बलराम भैया की चोटी के समान लम्बी और मोटी हो जाएगी और कंघी करते, गूंथते तथा स्नान कराते समय सर्पिणी के समान भूमि तक लोटने (लटकने) लगेगी (वह तेरी बात ठीक नहीं जान पड़ती)। मैया! मुझे बार-बार परिश्रम करके कच्चा दूध पिलाती हो, मक्खन-रोटी नहीं देती। पद के अंत में सूरदास जी कहते हैं कि बलराम घनश्याम की जोड़ी अनुपम है, ये दोनों भाई चिरंजीवी हों।
विशेष: सूरदास ने बालकृष्ण द्वारा मैया यशोदा को शिकायत करने का स्वाभाविक वर्णन किया है।
04 आजु मैं गाइ चरावन जैहौं ।
बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं॥
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।
तनक तनक पग चलिहौ कैसे, आवत ह्वै है अति राति॥
प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।
तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे रेंगति घामहि मांझ॥
तेरी सौं मोहिं घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।
सूरदास प्रभु कहयौ न मानत, पर्यौ आपनी टेक ॥
प्रसंग: प्रस्तुत पद सूरदास जी द्वारा रचित 'सूरदास के पद' से लिया गया है।यहाँ सूरदास ने कृष्ण जीके बाल सुलभ रूप का अनोखा वर्णन करते हुए कृष्ण द्वारा यशोदा को उलाहना देने की बात की है।
व्याख्या: सूरदास जी कहते हैं कि एक बार बालकृष्ण ने हठ पकड़ लिया कि मैया आज तो मैं गौएं चराने जाऊँगा।साथ ही वृन्दावन के वन में उगने वाले नाना प्रकार के फलों को भी अपने हाथों से खाऊँगा।इस पर माँ यशोदा ने कृष्ण जी को समझाया कि अभी तो तू बहुत छोटा है। इन छोटे-छोटे पैरों से तू कैसे चल पाएगा.. और फिर लौटते समय रात्रि भी हो जाती है।तुझ से अधिक आयु के लोग गायों को चराने के लिए प्रातः घर से निकलते हैं और संध्या होने पर लौटते हैं।सारे दिन धूप में वन-वन भटकना पड़ता है।फिर तेरा शरीर पुष्प के समान कोमल है, यह धूप को कैसे सहन कर पाएगा।यशोदा के समझाने का कृष्ण पर कोई प्रभाव नहीं हुआ, बल्कि उलटकर बोले, मैया, मैं तेरी सौगंध खाकर कहता हूँकि मुझे धूप नहीं लगती और न ही भूख सताती है।सूरदास कहते हैं कि प्रभु बाल श्रीकृष्ण ने यशोदा की एक नहीं मानी और अपनी ही बात पर अटल रहे।
विशेष: 1 कवि ने बाल हठ का सजीव वर्णन किया है।
अभ्यास
(क) - विषय-बोध
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
प्रश्न 1: यशोदा श्री कृष्ण को किस प्रकार सुला रही है?
उत्तर: यशोदा श्री कृष्ण को पालने में झूला झुलाते हुए, दुलारते हुए, पुकारते हुए तथा कुछ गाते हुए सुला रही है।
प्रश्न 2: यशोदा श्री कृष्ण को दूर क्यों नहीं खेलने जाने देती है ?
उत्तर : यशोदा श्री कृष्ण को दूर खेलने इसलिए नहीं जाने देती क्योंकि उसे डर है कि कहीं किसी की गाय उन्हें मार न दे।
प्रश्न 3: यशोदा श्री कृष्ण को दूध पीने के लिए क्या प्रलोभन देती है?
उत्तर : यशोदा श्री कृष्ण को कहती है कि यदि वह दूध पी लेंगे तो उनकी चोटी भी बलराम की चोटी के समान लंबी मोटी हो जाएगी ।
प्रश्न 4: श्री कृष्ण यशोदा से क्या खाने की माँग करते हैं ?
उत्तरः श्री कृष्ण यशोदा से खाने के लिए माखन रोटी की माँग करते हैं ।
प्रश्न - 5 अंतिम पद में श्रीकृष्ण अपनी माँ से क्या हठ कर रहे हैं?
उत्तरः अंतिम पद में श्री कृष्ण अपनी माँ से गाय चराने जाने की हठ कर रहे हैं। वे अपने हाथों से फल तोड़कर खाना चाहते हैं।
(ख) भाषा-बोध
1: नीचे दिए गए सूरदास के पदों में प्रयुक्त ब्रज भाषा के शब्दों के लिए खड़ी बोली हिंदी के शब्द लिखिए:
ब्रजभाषा के शब्द खड़ी बोली के शब्द ब्रजभाषा के शब्द खड़ी बोली के शब्द
कछु कुछ निंदरिया नींद
तोको तुमको कान्ह कन्हैया
कबहुँ कभी इहिं यहाँ
किति कितनी भुई भूमि
अरु और तुम्हरे तुम्हारे
निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए :
एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन
पलक पलकें गोपी गोपियाँ
नागिन नागिनें चोटी चोटियाँ
ग्वाला ग्वाले रोटी रोटियाँ