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कक्षा-दसवीं - अति महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

 

कक्षा-दसवीं

अति महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

ममता कहानी (जयशंकर प्रसाद जी)

 प्रश्न :- 1.'ममता' का चरित्र चित्रण कीजिए ।

उत्तर:- 'ममता' श्री जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित एक ऐतिहासिक कहानी है।  ममता  इस कहानी की प्रमुख पात्रा है । उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं उभर कर हमारे समक्ष आती हैं:-

1.कहानी की प्रमुख पात्रा:-

                    ममता इस कहानी की प्रमुख पात्रा है।सारी कहानी उसी के इर्द- गिर्द घूमती है। उसी के नाम पर इस कहानी का नामकरण किया गया है ।

2.एक विधवा कन्या :-

                 ममता चूड़ामणि की पुत्री है। अल्पायु में ही उसके पति की मृत्यु हो चुकी है।वह विधवा का जीवन व्यतीत कर रही है।

3.स्वाभिमानी भारतीय नारी :-

                      ममता हमारे सामने एक स्वाभिमानी भारतीय नारी के रूप में उभर कर आती है। जब यवनों के द्वारा उनके राज्य पर अधिकार कर लिया जाता है तो अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु वह बौद्ध विहार के खण्डहरों में रहने के लिए चली जाती है।

4.राष्ट्रप्रेम की भावना से परिपूर्ण :-

                           ममता में राष्ट्रप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। वह अपने राष्ट्रप्रेम के कारण ही पिता के द्वारा ली हुई रिश्वत को लौटाने का आग्रह करती है।

5.धर्मपरायण :-

            ममता अपने धर्म का पालन करना अच्छे से जानती है ।यह जानते हुए भी कि उसके पिता की हत्या यवनों के हाथों हुई है , अपनी धर्मपरायणता तथा अतिथि देवो भव: के धर्म का पालन करने हेतु वह एक मुगल को अपनी झोपड़ी में आश्रय देती है ।

6.परोपकारी :-

           ममता स्वभाव से परोपकारी है। वह आजीवन सभी के दुख - सुख की सहभागिनी रही । इसलिए उसके अंत समय में गाँव की स्त्रियाँ उसकी सेवा के लिए उसको घेर कर बैठी थीं।

 प्रश्न :- 2.'ममता' कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?

उत्तर:- 'ममता' कहानी  'श्री जयशंकर प्रसाद' जी द्वारा रचित एक ऐतिहासिक कहानी है। इस कहानी के माध्यम से लेखक हमें निम्नलिखित शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं:-

1 आदर्श जीवन जीने की शिक्षा :-

                          ममता कहानी के माध्यम से कहानीकार ने हमें  कर्त्तव्यनिष्ठ, त्यागी व तपस्वी जीवन जैसे  आदर्श गुणों को अपने जीवन में अपनाने की शिक्षा दी है।

2. कर्त्तव्य पालन व त्याग :-

                ममता कहानी के माध्यम से जयशंकर प्रसाद जी ने  हमें कर्त्तव्य पालन व त्याग की शिक्षा दी है। इस कहानी के माध्यम से कहानीकार बताना चाहता है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी विकट क्यों न हों, हमें सदैव अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए तथा आवश्यकता होने पर ममता की भाँति त्याग करने के लिए भी तत्पर रहना चाहिए।

3.अतिथि देवो भव: :-

                कहानीकार श्री जयशंकर प्रसाद जी ने ममता के चरित्र के माध्यम से अतिथि देवो भव: का संदेश भी जनमानस तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है। ममता में अतिथि देवो भव: की भावना कूट- कूट कर भरी हुई है। इसी भावना से प्रेरित होकर वह हुमायूँ को अपनी झोंपड़ी में रुकने के लिए स्थान देती है और स्वयं  खण्डहरों में रात बिताती है।

4 भ्रष्टाचार का विरोध तथा देश प्रेम की शिक्षा :-

                                    ममता कहानी में श्री जयशंकर प्रसाद जी ने ममता के संवादों के माध्यम से भ्रष्टाचार का विरोध किया है तथा रिश्वत ना लेने की शिक्षा दी है। इस कहानी में उन्होंने देश के हित को सर्वोपरि मानते हुए देश से गद्दारी ना करने की शिक्षा भी दी है।

5. धार्मिक भेदभाव को दूर करना :-

                           ममता कहानी हमें धार्मिक भेदभाव को दूर करने की शिक्षा भी देती है ।ममता एक हिंदू होते हुए भी एक मुस्लमान की सहायता करती है ।

अत: इस प्रकार से हमें पथिक को आश्रय देना, परोपकार का बदला न चाहना तथा देश की सभ्यता तथा संस्कृति की रक्षा करने की शिक्षा देने में श्री जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित यह कहानी पूर्णतया सफल रही है।

 

अशिक्षित का ह्रदय (कहानी)

विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक'

प्रश्न:- 1. 'मनोहर सिंह' का चरित्र चित्रण कीजिए

उत्तर:- 'अशिक्षित का हृदय’ कहानी में 'मनोहर सिंह' सर्वाधिक आकर्षक पात्र है। वह कहानी का केन्द्र बिन्दु है। अशिक्षित का हृदय कहानी में मनोहर सिंह के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं उभरकर हमारे समक्ष आती हैं:-

1. कहानी का प्रमुख पात्र :-   

                    मनोहर सिंह अशिक्षित का ह्रदय कहानी का प्रमुख पात्र है। उसकी आयु लगभग 55 वर्ष है ।संपूर्ण कहानी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी का शीर्षक भी उसी की ओर लक्ष्य करता है। लेखक का उद्देश्य भी उसी के चरित्र पर प्रकाश डालना है।

2. परिवार के सुख से वंचित :-   

                      मनोहर सिंह ने अपना यौवन फौज़ में नौकरी करते हुए बिताया ।अब वह संसार में अकेला है ।परिवार का कोई सगा संबंधी नहीं। गाँव में 1-2 दूर के संबंधी हैं, जिन से भोजन बनवा कर वह अपने जीवन की गाड़ी खींच रहा है।

3. ऋणी :- 

        एक बार वह ठाकुर शिवपाल सिंह से खेती के लिए कर्ज़ा लेता है । किंतु वर्षा ना होने के कारण खेती अच्छे से नहीं होती और वह ठाकुर शिवपाल सिंह का ऋणी बन जाता है।

4. प्रकृति प्रेमी :-

           ठाकुर शिवपाल सिंह प्रकृति प्रेमी है।  वह उस नीम के पेड़ को अपने भाई के समान प्यार करता है जो उसके पिता के हाथ का लगाया हुआ था। उसकी रक्षा के लिए वह मर मिटने को भी तैयार हो जाता है।

5. स्वाभिमानी :-

            मनोहर सिंह में स्वाभिमान तथा अहं का भाव एक साथ थे। वह तेजा सिंह को कहता है,"बेटा, मैंने सारी उम्र फौज में बिताई है। बड़ी-बड़ी लड़ाई और मैदान देखे हैं। ये बेचारे हैं किस खेत की मूली। आज शरीर में बल होता, तो इनकी मजाल नहीं थी कि मेरे पेड़ के लिए ऐसा कहते। मुँह नोच लेता। मैंने कभी नाक पर मक्खी नहीं बैठने दी। बड़े-बड़े साहब-बहादुरों से लड़ पड़ता था। ये बेचारे हैं क्या?"

6. उपकार को मानने वाला :-

                    मनोहर सिंह अपने ऊपर किए हुए उपकार का बदला अच्छे से चुकाना जानता है। जब उसे पता चलता है कि तेजा सिंह उसके पेड़ को बचाने के लिए घर से पैसे चुरा कर लाया है तब  वह अपना पेड़ उसी के नाम कर देता है।

    इस प्रकार से ठाकुर शिवपाल सिंह ऋणी, प्रकृति प्रेमी, परिवार के सुख से वंचित, स्वाभिमानी तथा कृतज्ञ पात्र के रुप में उभरकर हमारे समक्ष आता है।

प्रश्न:- 2. 'तेजा सिंह' का चरित्र चित्रण कीजिए

उत्तर:- तेजा सिंह 'अशिक्षित का ह्रदय' कहानी का दूसरा प्रमुख पात्र

है ।  अशिक्षित का हृदय कहानी में उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं उभरकर हमारे समक्ष आती हैं:-

1. कहानी का प्रमुख पात्र :-  

                 तेजा सिंह अशिक्षित का ह्रदय कहानी का दूसरा प्रमुख पात्र है। उसकी आयु लगभग 15- 16 वर्ष है । वह गाँव के एक प्रतिष्ठित किसान का बेटा है।

2. समझदार :-

       तेजा सिंह एक समझदार पात्र के रूप में उभरकर हमारे सामने आता है। बूढ़े मनोहर सिंह का अपने पेड़ के प्रति प्रेम जो बड़े से बड़े लोग नहीं समझ पाते, उसे यह छोटा सा समझदार बच्चा बड़ी आसानी से समझ लेता है।

3. भावुक :-

         तेजा सिंह एक भावुक किशोर है ।वह मनोहर सिंह को चाचा कह कर बुलाता है । जब वह मनोहर सिंह का पेड़ के प्रति प्रेम देखता है तो उसका दिल पसीज जाता है ।

4. प्रकृति प्रेमी :-  

             तेजा सिंह एक विशुद्ध प्रकृति प्रेमी है।  पेड़ की रक्षा के लिए वह अपने घर से 25 रुपये चुराकर लाता है। पिता द्वारा पैसे वापिस माँगे जाने पर वह अपनी नानी द्वारा दी गयी सोने की अंगूठी पेड़ को बचाने के लिए दे देता है। उसके प्रकृति प्रेम को देखकर ही मनोहर सिंह अपना नीम का पेड़ उसके नाम कर देता है।

5. साहसी :-  

         तेजा सिंह एक साहसी बालक है। वह मनोहर सिंह के साथ बड़े साहस से शिवपाल सिंह का सामना करता है तथा अंत में अपने साहस के कारण ही पेड़ की रक्षा करने में सफल हो जाता है।    

प्रश्न:-3. 'अशिक्षित का ह्रदय' कहानी का उद्देश्य क्या है ?

उत्तर :- 'विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक' द्वारा रचित कहानी 'अशिक्षित का ह्रदय' एक उद्देश्य पूर्ण रचना है। इस कहानी के माध्यम से कहानीकार ने कहानी  के मुख्य पात्र मनोहर सिंह के निश्चल और स्नेहपूर्ण ह्रदय का चित्रण किया है। इस कहानी का उद्देश्य निम्नलिखित है:-

1.प्रकृति के साथ मनुष्य के प्रेम पर प्रकाश डालना :-

                                    इस कहानी का प्रधान उद्देश्य प्रकृति के साथ मनुष्य के प्रेम पर प्रकाश डालना है। व्यक्ति का व्यक्ति के प्रति प्रेम तो अक्सर देखने को मिलता है परंतु व्यक्ति का एक पेड़ के प्रति प्रेम कम ही देखने को मिलता है जो इस कहानी में दिखाया गया है। मनोहर सिंह नीम के पेड़ को अपने भाई के समान प्यार करता है और उसकी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार हो जाता है।

2.ऋण न  लेने की प्रेरणा :-

                    इस कहानी के माध्यम से कौशिक जी ने यह बताने का प्रयास भी किया है कि हमें ऋण नहीं लेना चाहिए। इस कहानी का संपूर्ण घटनाक्रम तभी घटित होता है जब इस कहानी का प्रमुख पात्र मनोहर सिंह ठाकुर शिवपाल सिंह से ऋण लेता है और फिर ऋण ना चुका सकने की सूरत में उसे ठाकुर शिवपाल सिंह के शोषण का शिकार होना पड़ता है।

3.निस्वार्थ प्रेम :-

           इस कहानी में कहानीकार ने  तेजा सिंह के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया है कि संसार में कुछ ऐसे मनुष्य भी होते हैं जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करते हैं । तेजा सिंह के द्वारा कर्ज में डूबे मनोहर सिंह का नीम का पेड़ बचाने में उसकी हर संभव सहायता करना निस्वार्थ प्रेम की ही उदाहरण है।

सारांश :-

      इस प्रकार से इस कहानी  के माध्यम से कहानीकार ने मनुष्य के प्रकृति के प्रति प्रेम,ऋण से होने वाले नुकसान और निस्वार्थ प्रेम की भावना को प्रकट किया है।

 

दो कलाकार (मन्नू भंडारी)

प्रश्न :- 1.दो कलाकार कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए

उत्तर:-  प्रत्येक रचना के पीछे रचनाकार का कोई न कोई उद्देश्य होता है। 'मन्नू भंडारी' जी के द्वारा रचित 'दो कलाकार' कहानी भी एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। इस कहानी का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है:-

1.मानवीय गुणों पर प्रकाश डालना :-

                           इस कहानी में लेखक का मुख्य उद्देश्य यह बताना है कि कलाकार में मानवीय गुणों का होना अति आवश्यक है । कहानी में अरुणा और चित्रा दो सहेलियाँ हैं ।चित्रा एक प्रसिद्ध चित्रकार है। वह अपने चित्रों से देश विदेश में प्रसिद्धि पाती है ।मरी हुई भिखारिन के साथ चिपक कर रोते हुए बच्चों का चित्र बनाकर वह बहुत नाम कमाती है। लेकिन अरुणा जो मानवीय गुणों से परिपूर्ण है, उन्हीं बच्चों का लालन-पालन करके उनको बड़ा करती है। उन्हें माँ का प्यार देती है। इस प्रकार से वह चित्रा से भी बड़ी कलाकार है।

2.कला की अदम्य परिभाषा :-

                      दो कलाकार कहानी के माध्यम से मन्नू भंडारी जी ने कला की अद्भुत परिभाषा पर प्रकाश डाला है।लेखक बताता है कि वास्तविक कलाकार वह नहीं है ,जो अपनी कलाकृतियों से संसार भर में प्रसिद्धि प्राप्त करता है, अपितु वास्तविक कलाकार वह है जो अपनी कला से दूसरे लोगों की बेरंग जिंदगी में रंग भर देता है।

 3.सारांश :- 

          इस प्रकार से 'दो कलाकार' कहानी का मुख्य उद्देश्य है मानवीय गुणों के महत्व पर प्रकाश डालना और कला का वास्तविक अर्थ लोगों को समझाना। अपने दोनों उद्देश्यों में लेखक पूर्णतया सफल रहा है।

 

प्रश्न:-2. 'दो कलाकार' के आधार पर अरुणा का चरित्र चित्रण करें।

उत्तर :-  अरुणा 'मन्नू भंडारी' जी द्वारा रचित दो कलाकार कहानी की प्रमुख पात्रा है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताओं पर मन्नू भंडारी जी ने प्रकाश डाला है।

1.दो कलाकार कहानी की प्रमुख पात्रा :-

                         अरुणा मन्नू भंडारी जी के द्वारा रचित दो कलाकार कहानी की प्रमुख पात्रा है ।सारा का सारा घटनाक्रम उसी के इर्द-गिर्द घूमता है।

2.सच्ची समाज सेविका :-

                  अरुणा एक सच्ची समाज सेविका है। छात्रावास में रहते हुए वह गरीबों, चपरासियों आदि के बच्चों को निशुल्क पढ़ाती है, तथा बाढ़ पीड़ितों की सहायता करने के लिए भी वह अपनी समाज सेवा की भावना से प्रेरित होकर ही जाती है।

3.मानवीय गुणों से भरपूर :-

                     अरुणा मानवीय गुणों से भरपूर है । किसी के दुख को देखकर वह द्रवित हो उठती है। फुलिया दाई के बच्चे के बीमार हो जाने पर वह उस की रात भर सेवा करती है। बच्चे की मृत्यु के पश्चात में वह बहुत दुखी होती है।

4. ममत्व की भावना से परिपूर्ण :-

                          अरुणा ममत्व की भावना से परिपूर्ण है। जिस भिखारिन के चित्र को बनाकर उसकी सहेली चित्रा देश-विदेश में ख्याति प्राप्त करती है, अरुणा उन्हीं  बच्चों की माँ बनकर उनका लालन - पालन करती है। इस तरह वे अपनी महानता का परिचय देती है।

5. चित्रा से बड़ी कलाकार :-

                   जिस प्रकार से मन्नू भंडारी जी ने अरुणा के चरित्र को पाठकों के सम्मुख पेश किया है , वह सभी पात्रों के समक्ष चित्रा से मंझी हुई कलाकार के रूप में उभर कर हमारे सामने आती है क्योंकि चित्रा तो केवल बेरंग तस्वीरों में रंग भरने का कार्य करती है किंतु अरुणा अपनी समाज सेवा तथा ममत्व की भावना से बेसहारा बच्चों की बेरंग जिंदगी में रंग भर देती है। इस प्रकार से वह चित्रा से बड़ी कलाकार है।

 

नर्स (कला प्रकाश )

प्रश्न:- 1. सिस्टर सूसान का चरित्र- चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:- नर्स कहानी 'कला प्रकाश' जी के द्वारा लिखी हुई एक मनोवैज्ञानिक तथा भावपूर्ण रचना है। सिस्टर सूसान इस कहानी की प्रमुख पात्रा है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं हमारे समक्ष दृष्टिगोचर होती हैं:-

1.कहानी की प्रमुख पात्रा :- 

                सिस्टर सूसान नर्स कहानी की प्रमुख पात्रा है। उसका पेशा नर्स है और नर्स के सभी गुण उसमें मौजूद हैं । कहानी का सम्पूर्ण घटनाक्रम उसी को लक्ष्य कर आगे बढ़ता है।

2.मानवतावादी :-

               सिस्टर सूसान में मानवता की भावना कूट-कूट कर भरी है। उसके लिए नर्सिंग केवल एक व्यवसाय ही नहीं, अपितु मानवता की सेवा भी है।

3.बाल मनोविज्ञान से परिचित :-

                         सिस्टर सूसान बाल मनोविज्ञान से भली- भाँति परिचित है । कहानी में वह केवल रोगी का इलाज और देखभाल ही नहीं करती, बल्कि रोगी की स्थिति से परिचित होकर उसके अनुरूप व्यवहार भी करती है। जब अस्पताल में दाखिल छह वर्षीय महेश को अपनी माँ के बिना अच्छा नहीं लगता तो ऐसे में सिस्टर सूसान अपनी बातचीत तथा व्यवहार से उसे सुरक्षा प्रदान करती है।

 4.ममत्व की भावना से परिपूर्ण :-

                          सिस्टर सूसन अस्पताल में दाखिल बच्चों के  साथ माँ जैसा व्यवहार करती है। उसका यही व्यवहार रोगियों के लिए औषधि से अधिक उपयोगी साबित होता है।

 5. कर्त्तव्यपरायण :-

                सिस्टर सूसान नर्स के रूप में अपने कर्त्तव्य का बहुत अच्छे से निर्वाह  करती है। वह रोगियों का मनोबल बढ़ाती है और प्रतिकूल स्थिति को भी अनुकूल स्थिति में बदल देती है।

प्रश्न:-2. नर्स कहानी का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:- लेखिका 'कला प्रकाश' द्वारा लिखी गयी कहानी 'नर्स ' एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। इस कहानी का प्रमुख उद्देश्य इसकी रचना में ही सामाहित है। इस कहानी की रचना के पीछे प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

1.नर्स के सेवाभाव तथा ममत्व को रोगी के हित में प्रस्तुत करना :-

                                               इस कहानी का सर्वप्रमुख उद्देश्य नर्स के सेवाभाव तथा ममत्व को रोगी के हित में प्रस्तुत करना है ताकि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों की कार्यप्रणाली को निरूपित किया जा सके।

2.बीमार बच्चों की मनोदशा का चित्रण :-

                              नर्स कहानी के माध्यम से 'कला प्रकाश' ने महेश के चरित्र के माध्यम से बीमार बच्चों  की मनोदशा का चित्रण करने का सफल प्रयास किया है। लेखिका महेश के माध्यम से बताना चाहती है कि बीमार बच्चे का अस्पताल में मन नहीं लगता।वह बीमारी की दशा में अपने अभिभावकों को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता।

3.परोपकारी तथा संवेदनशील बनने की शिक्षा :-

                                   नर्स कहानी का उद्देश्य हमें परोपकारी तथा संवेदनशील बनने की शिक्षा देना भी है। ताकि हम सभी का दुख समझ सकें।संक्षेप में कहा जा सकता है कि अपनी बात को पाठकों तक पहुँचाने में लेखिका पूर्णतया सफल रही हैं।

 

मित्रता निबन्ध (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल)

प्रश्न:- 1.सच्चे मित्र के कौन-कौन से गुण लेखक ने बताए हैं?

उत्तर:- अचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने एक सच्चे मित्र के बहुत सारे गुण अथवा विशेषताओं का वर्णन मित्रता निबंध के अंतर्गत किया है। जिनमें से मुख्य का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है :-

1.सच्चा पथ प्रदर्शक :-

                हमारा सच्चा मित्र हमारा सच्चा पथ प्रदर्शक होना चाहिए। जो हमें गलत मार्ग से हटाकर सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे।केवल छोटे-छोटे कार्य निकालने के लिए किसी से मित्रता ना करें ।

2.विश्वासपात्र :-

           एक उत्तम मित्र ऐसा होना चाहिए जिस पर हम आँख मूंदकर विश्वास कर सकें ।

3.आन्तरिक स्नेह करने वाला:-

                     ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता जो प्रत्यक्ष रुप में हमारे गुणों को का तो प्रशंसक हो किंतु हमसे आन्तरिक स्नेह न रखता हो। वह हमें माता के जैसा स्नेह करने वाला होना चाहिए।

4. सहानुभूति से परिपूर्ण :-

                      मित्रों के मध्य सहानुभूति का होना भी अनिवार्य है। जिससे कि वह एक दूसरे के हानि- लाभ को अपना हानि- लाभ मान सकें‌।

5. हम से अधिक दृढ़ संकल्पी न हो :-

                        मित्र बनाते समय हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह हम से अधिक दृढ़ संकल्प का ना हो  क्योंकि ऐसे व्यक्ति की बात हमें बिना किसी विरोध के मार लेनी पड़ती है ।

सारांश:-

        केवल हंसमुख चेहरा, बातचीत का ढंग देखकर ही हमें किसी को मित्र नहीं बना लेना चाहिए। उसके गुणों तथा स्वभाव की परीक्षा लेकर ही मित्रता करनी चाहिए।

प्रश्न:- 2. दो भिन्न प्रकृति के लोगों में परस्पर प्रीति और मित्रता बनी रहती है- उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

 उत्तर :- यह आवश्यक नहीं कि मित्रता एक ही प्रकार के स्वभाव तथा कार्य करने वाले लोगों में हो। मित्रता भिन्न प्रकृति  तथा व्यवसाय के लोगों में भी हो सकती है। इस तथ्य को निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से समझा जा सकता है:-

1. राम तथा लक्ष्मण की मित्रता :-  

                         उदाहरणस्वरूप हम राम और लक्ष्मण की मित्रता को ले सकते हैं। दोनों भाइयों के स्वभाव में बड़ा अंतर था । राम धीर- गंभीर प्रकृति के शांत पुरुष थे। लक्ष्मण उग्र प्रकृति के थे। फिर भी दोनों भाईयों में एक- दूसरे के प्रति अगाध प्रेम एवं सम्मान की भावना थी। अतः दोनों की मित्रता अनुकरणीय बन गई ।

2. अकबर तथा बीरबल की मित्रता :-

                           मुगल सम्राट अकबर और उनके मित्र बीरबल भिन्न स्वभाव के होते हुए भी अच्छे मित्र थे। अकबर नीति विशारद तथा बीरबल हंसोड़ व्यक्ति थे।

प्रश्न:- 3. मित्र का चुनाव करते समय हमें किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर:- सही मित्र का चुनाव करते समय हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:-

1.वह हमसे  अधिक दृढ़ संकल्प का ना हो।

2. वह सद्गुणों से परिपूर्ण हो।

3.उसमें माता का सा धैर्य तथा वैद्य की सी निपुणता होनी चाहिए।

4. एक सच्चा मित्र सच्चे पथ प्रदर्शक के समान हो, विश्वसनीय हो।

5.वह हमारे भाई जैसा हो ,जिसे हम अपना प्रीति पात्र बना सकें।

6. वह प्रतिष्ठित, शुद्ध हृदय, मधु भाषी तथा सत्यनिष्ठ होना चाहिए।

 

राजेंद्र बाबू (निबंध)

महादेवी वर्मा

 

प्रश्न:-1. राजेंद्र बाबू की शारीरिक बनावट, वेशभूषा और स्वभाव का वर्णन करें।

 उत्तर:- महादेवी वर्मा द्वारा  राजेंद्र बाबू जी की शारीरिक बनावट, वेशभूषा और स्वभाव का वर्णन निम्नलिखित अनुसार किया गया है :-

1.शारीरिक बनावट :-

               राजेंद्र बाबू के शरीर का गठन एक सामान्य भारतीय के समान ही था ।उनके काले घने कटे हुए बाल, चौड़ा माथा,घनी भृकुटियों के बीच बड़ी आँखें, मुख के अनुपात में कुछ भारी नाक, कुछ गोलाई लिए चौड़ी ठुड्डी,कुछ मोटे पर सुडौल होंठ,  गेहुआँ वर्ण, ग्रामीणों जैसी बड़ी बड़ी मूंछें, ऊपर के होंठ पर ही नहीं नीचे के होंठ पर भी अपने बालों का आवरण डाले हुए थीं। हाथ, पैर ,शरीर सब में लंबाई की ऐसी विशेषता थी जो दृष्टि को अनायास ही आकर्षित कर लेती थी।

 2.वेशभूषा :-

           उनकी वेशभूषा अस्त-व्यस्त होती थी। वह खादी की धोती ऐसा फंटा देकर बांधते थे कि एक और दाहिने पैर पर घुटना  छूती थी और दूसरी और बाएं पैर की पिंडली। मोटे खुरदरे काले गले के कोट के ऊपर का भाग बटन टूट जाने के कारण खुला रहता था। पैरों में मोज़े फटे होते और  वह गाँधी टोपी पहनते।

3. स्वभाव :- 

        राजेंद्र बाबू स्वभाव और रहन-सहन में सामान्य भारतीय कृषक का ही प्रतिनिधित्व करते थे । देश के राष्ट्रपति होने के बावजूद केवल बिल्कुल साधारण जीवन व्यतीत करते थे।

प्रश्न:- 2.पाठ के आधार पर राजेंद्र बाबू की पत्नी की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें।

उत्तर:- राजेंद्र बाबू की पत्नी एक सचिव भारतीय नारी थी। उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन महादेवी वर्मा ने अपने निबंध में किया है:-

1.क्षमामयी :- 

           महादेवी वर्मा के अनुसार राजेंद्र बाबू की पत्नी धरती की पुत्री थी। वह धरती के समान क्षमामयी, सहनशील, ममतामयी तथा त्याग की भावना से परिपूर्ण है।

2.ममतालु :-

         जब वह अपने पोतियों को मिलने छात्रावास में जाती थीं तो वह सभी बालिकाओं तथा नौकरों का समान रुप से ध्यान रखती थीं और छात्रावास कुछ घंटे जाने पर भी सब को बुला- बुलाकर उनका हालचाल पूछती थीं।

3.विनम्र :-

        बिहार के जमींदार परिवार की पुत्र वधू और स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी होने का उनमें लेशमात्र भी अभिमान नहीं था। वह बहुत ही विनम्र स्वभाव की थीं । इसलिए नौकरों के साथ भी भेदभाव नहीं करती थीं।

4.सरल ह्रदया :-

             वे सरल हृदया थीं। वे राष्ट्रपति भवन में भी अपना भोजन स्वयं बनाती थीं तथा पति, परिवार व परिजनों को खिलाकर ही स्वयं अन्न ग्रहण करती थीं‌।

5. धार्मिक भावना से परिपूर्ण :-

 राजेंन्द्र बाबू की पत्नी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।गंगा स्नान के समय में खूब दान करती थीं। सच्चे अर्थों में वह धरती की पुत्री थीं।

 

श्री गुरु नानक देव जी ( निबन्ध)

डाॅ. सुखविन्द्र कौर बाठ

 

प्रश्न:-1. जिस समय श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उस समय भारतीय समाज की क्या स्थिति थी?

उत्तर:-

1. समाज में अनेक बुराइयों का बोलबाला :-  

                                 जिस समय श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ ,उस समय समाज में अनेक बुराइयों का बोलबाला था। जैसे:-  बाल विवाह, सती प्रथा आदि।

2.अनेक जातियों तथा संप्रदायों में समाज का विभाजन :-

                                           श्री गुरु नानक देव जी के समय समाज  अनेक प्रकार की जातियों , संप्रदायों और धर्मों में बंटा हुआ था। धर्म के नाम पर आपस में बहुत भेदभाव किया जाता था।

3 लोगों की रूढ़िवादी सोच :-

                       श्री गुरु नानक देव जी जी के समय लोगों के विचार बहुत ही संकीर्ण थे। वे अनेक प्रकार की रूढ़ियों में फंसे हुए थे ।वे घृणा करने योग्य कार्यों  में लगे रहते थे।

4.धर्म के नाम पर दिखावे का बोलबाला :-

                                समाज में धर्म केवल नाम मात्र ही रह गया था। धर्म के नाम पर दिखावे का बोलबाला था।

5.शासकों के द्वारा आम जनता का शोषण :-

                                  शासक वर्ग के द्वारा साधारण जनता का बुरी तरह से शोषण किया जाता था। दलितों पर भी बहुत से अत्याचार किये जाते थे।

प्रश्न:- 2.श्री गुरु नानक देव जी की वाणी की विशेषता अपने शब्दों में लिखिए ।

उत्तर :-

1. आदि ग्रंथ साहब में स्थान:-   

                       श्री गुरु नानक देव जी की वाणी के 974 पद और श्लोक  आदि ग्रंथ साहिब में संकलित हैं।

2.सृष्टि, जीव तथा ब्रह्मा के संबंध में चर्चा :-

                          श्री गुरु नानक देव  जी की वाणी में सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्मा जी तथा जगत के संबंध में विस्तार से चर्चा की गई है।

3.अकाल पुरुष के स्वरूप का वर्णन :-

                           श्री गुरु नानक देव जी की वाणी में अकाल पुरुष के स्वरूप का वर्णन करते अकाल पुरुष को निराकार ,सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान बताया गया है।

4.माया से दूर रहने का उपदेश :-

                       श्री गुरु नानक देव जी की वाणी में माया के विविध रूपों का वर्णन करते हुए उस से दूर रहने का उपदेश दिया गया है।

5.अद्भुत तथा अनूठी शैली :-

                        अपनी वाणी में  श्री गुरु नानक देव जी ने भाषा का प्रयोग किया है वह अद्भुत और अनूठी है, इसे समझना साधारण मानव के लिए बिल्कुल भी कठिन नहीं है।

 

सूखी डाली (एकांकी)

उपेन्द्रनाथ अश्क

 

प्रश्न:- 1. मँझली बहू के चरित्र की कौन सी विशेषताएं इस कहानी में सबसे अधिक दृष्टिगोचर होती है?

उत्तर:-

1. एकांकी की प्रमुख पात्रा :- 

                     मँझली बहू 'सूखी डाली' एकांकी की प्रमुख पात्रा है ।अपने विनोदी स्वभाव से वह  घर के आँगन को महका कर रखती है।

2 विनोदी :-

         मँझली बहू विनोदी स्वभाव की है। इस एकांकी में वह हँसी ठिठोली करने वाली हंसमुख स्वभाव की स्त्री के रूप में दृष्टिगोचर होती है। सारा दिन छोटी-छोटी बातों पर हँसती मुस्कुराती रहती है। किसी के विचित्र व्यवहार पर हँसना और ठहाके लगाना उसके लिए सामान्य सी बात है।

3.दादा जी का सम्मान करने वाली :-

                                घर के अन्य सदस्यों की तरह वह दादा जी का बहुत सम्मान करती है ।

4.परिवर्तनशील स्वभाव वाली :-

                          मँझली बहू परिवर्तनशील स्वभाव की है। जब दादा जी उसे समझाते हैं कि हमें अपनी हँसी उन लोगों तक ही सीमित रखनी चाहिए जो उसे सहन कर सकें तो वह बेला के प्रति अपने स्वभाव में परिवर्तन ले आती है।

प्रश्न:- 2. सूखी डाली एकांकी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर:-

 1.अश्क जी के द्वारा रचित शिक्षाप्रद रचना :-

                                    प्रत्येक रचना के पीछे रचनाकार का कोई ना कोई उद्देश्य होता है । सूखी डाली भी उपेंद्रनाथ अश्क जी के द्वारा रचित शिक्षाप्रद परिवारिक एकांकी है।

2. बुजुर्गों का सम्मान करने की शिक्षा :-

                               सूखी डाली एकांकी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें घर के बड़े -बूढ़ों,बुजुर्गों , माता-पिता आदि का आदर करना चाहिए । उनके प्रति श्रद्धा भाव रखना चाहिए।

3. संयुक्त परिवार में रहने की शिक्षा :- 

                              इस एकांकी  के माध्यम से हमें एकांकीकार ने घर के सभी सदस्यों को मिल -जुल कर रहने की शिक्षा देने का भी प्रयास किया है। जिसमें कि अश्क जी पूर्णतया सफल भी रहे हैं‌।

4. विद्या का घमंड नहीं करने की शिक्षा :-  

                              एकांकी में बेला के चरित्र के माध्यम से अश्क जी ने विद्या पर घमंड ना करने की शिक्षा भी दी है। उन्होंने बताया है कि स्वयं को सुशिक्षित तथा सुसंस्कृत मानकर घमंड में चूर नहीं रहना चाहिए, अन्यथा घमंड में रहने वाला व्यक्ति परिवार के साथ रहते हुए भी सूखी डाली के समान जड़ बन कर रह जाता है।

5. पारिवारिक संघर्ष को सूझबूझ से हल करने की शिक्षा :- 

                                               सूखी डाली एकांकी  हमें घर में होने वाले संघर्ष को सूझ- बूझ से दूर करने की शिक्षा देती है।

 

देश के दुश्मन (एकांकी)

 

 

प्रश्न:-1. जयदेव ने तस्करों को कैसे पकड़ा?

उत्तर :-

 1.गुप्तचरों के द्वारा सोना स्मगल होने की खबर मिलना :-

                                                                                              जयदेव को गुप्तचरों  के माध्यम से यह समाचार मिलता है कि रात के अंधेरे में पुलिस पीकेट से कुछ दूरी पर स्मगलर सोना स्मगल करने जा रहे हैं।

2.मौके को हाथ से ना जाने देना :-

                           जयदेव इस अवसर को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता। इसलिए वह अपनी छुट्टी कैंसिल करवा लेता है।

3.तस्करों द्वारा सोने को स्मगल करने की कोशिश करना :-

                                                      आधी रात के बाद तस्कर जयदेव की चौकी से दो मील दूर एक खतरनाक घने ढाक के ऊबड़ खाबड़  रास्ते से बॉर्डर पार करके सोना स्मगल करने की कोशिश करते हैं।

4. तस्करों पर फायरिंग :-

                                         तस्करों को बॉर्डर पर करते हुए देखकर जयदेव और उसके साथियों ने उनको चैलेंज किया। जिसके बदले में उन लोगों ने गोलियाँ चलानी शुरू कर दी।जयदेव ने उनकी चुनौती को स्वीकार करके अपने साथियों के सहयोग से उनका पीछा किया ।

5. जीप लुढ़क कर खड्डे में गिरना :- 

                          जयदेव व उसके साथियों ने  फायरिंग करके तस्करों की जीप का पहिया उड़ा दिया।  जिससे उनकी जीप खड्डे में जा गिरी।

6. तस्करों की घेराबंदी तथा उनकी गिरफतारी :- 

                                  तत्पश्चात जयदेव और उसके साथी अफसरों ने मुगलों की घेराबंदी की तथा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ।इस प्रकार से जयदेव और उसके साथियों ने तस्करों को पकड़ लिया।

 

पूजा रानी

हिन्दी अध्यापिका

स.स.स.स्कूल, बोड़ा।

होशियारपुर ।