पाठ - 3
नीति के दोहे
रहीम------------------------------------------
कहि रहीम सम्पत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत ।
विपत कसौटी जे कसे, सोई साँचै मीत ।। (1)
व्याख्या-रहीम जी कहते हैं कि जब तक मनुष्य के पास धन-दौलत, पैसा व संपत्ति रहती है तब तक मनुष्य के बहुत से रिश्तेदार, मित्र व दोस्त होते हैं और वे अनेक प्रकार से मित्र बनने का प्रयास करते हैं। परंतु जो मुसीबत के समय हमारा साथ देता है, विपत्ति की कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा मित्र होता है।
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय ।
रहिमन सींचे मूल को, फूलै फलै अधाय || (2)
व्याख्या- इस दोहे में रहीम जी कहते हैं कि एक की साधना पूरी तरह से करने पर सब साधे जाते हैं अर्थात् अगर हम एक समय में एक काम की तरफ पूर्ण रूप से ध्यान देते हैं तो बाकी सारे काम भी पूरे हो जाते हैं। इसके विपरीत अगर हम सभी कार्य एक साथ करने का प्रयास करते हैं तो सब बेकार हो जाता है। जिस प्रकार वृक्ष की जड़ को सींचने पर उस पर लगे फल-फूल भी अपने आप तृप्त हो जाते हैं, उन्हें अलग से सींचना नहीं पड़ता। ठीक उसी प्रकार एक समय पर एक काम की ओर ध्यान केंद्रित करने पर बाकी काम भी अच्छे से संपन्न हो जाते हैं।
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहि न पान ।
कहि रहीम पर काज हित, सम्पत्ति संचहिं सुजान।। (3)
व्याख्या-इस दोहे में रहीम जी कहते हैं कि पेड़ कभी अपना फल स्वयं नहीं खाता बल्कि अपने फल से दूसरों की भूख मिटाता है। सरोवर अपना पानी स्वयं नहीं पीता बल्कि अपने जल से दूसरों की प्यास बुझाता है। ठीक उसी प्रकार अच्छे और सज्जन व्यक्ति संपत्ति का संचय अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए करते हैं अर्थात् वह अपने द्वारा एकत्र की गई धन-दौलत को दूसरों की भलाई में लगा देते हैं।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, का करे तरवारि ।। (4)
व्याख्या-इस दोहे में रहीम जी कहते हैं कि हमें बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु के महत्व को भूलना नहीं चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे जहाँ पर सुई का काम होता है वहाँ पर तलवार कुछ नहीं कर सकती अर्थात् सुई चाहे आकार में कितनी भी छोटी क्यों न हो परंतु उसका कार्य वही कर सकती है, तलवार जैसी बड़ी चीज भी नहीं। अतः हमें बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु की उपयोगिता को भूलना नहीं चाहिए।
बिहारी--------------------------------------
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय ।
बह खाये बौरात है, यह पाये बौराय II(5)
व्याख्या- इस दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि कनक अर्थात् सोने का नशा कनक अर्थात् धतूरे के नशे से सौ गुना अधिक होता है। धतूरे को तो खाने से नशा चढ़ता है परंतु सोना अर्थात् धन-दौलत को प्राप्त करने पर ही मनुष्य को उसका नशा चढ़ जाता है। अर्थात् अधिक धन दौलत का नशा अर्थात् अभिमान मनुष्य को पागल बना देता है।
इहि आशा अटक्यो रहै, अलि गुलाब के मूल ।
हो इहै बहुरि बसंत ऋतु, इन डारनि पै फूल || (6)
व्याख्या-बिहारी जी कहते हैं कि भँवरा इसी आशा के साथ पतझड़ में भी गुलाब की जड़ व डालियों के आसपास मंडराता रहता है कि बसंत आने पर इन डालियों पर फिर से फूल खिलेंगे और वह उन फूलों का रसपान करेगा। इसी तरह मनुष्य को भी जीवन में निराश न होकर आने वाले अच्छे दिनों के लिए आशावादी बनकर रहना चाहिए।
सोहतु संग समानु सो, यहै कहै सब लोग।
पान पीक ओठनु बनै, नैननु काजर जोग।। (7)
व्याख्या- इस दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि एक जैसे स्वभाव और गुणों वाले लोगों का साथ शोभा देता है, ऐसा सब लोग कहते व मानते हैं। जैसे पान का रंग लाल होता है और उसकी लाल रंग की पीक होठों पर ही अच्छी लगती है। काजल का रंग काला होता है और वह आँखों में ही शोभा देता है।
गुनी गुनी सबकै कहैं, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यौ कहूँ
तरू अरक तें, अरक- समान उदोतु II (8)
व्याख्या-बिहारी जी कहते हैं कि गुणी-गुणी कहने से कोई गुणहीन व्यक्ति गुणवान नहीं बन जाता। जिस प्रकार सूर्य को अर्क भी कहते हैं और आक का पौधा भी अर्क कहलाता है परंतु अर्क कहलाने मात्र से आक के पौधे में सूर्य के समान गुण नहीं आ जाते। अतः हमें किसी के नाम पर नहीं बल्कि उसके गुणों व योग्यता पर ध्यान देना चाहिए।
वृन्द ---------------------------------
करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान ।। (9)
व्याख्या-वृन्द जी कहते हैं कि लगातार अभ्यास करने से एक मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। जिस प्रकार रस्सी के बार-बार घिसने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं। अतः लगातार मेहनत करके कमज़ोर व्यक्ति भी अपने लक्ष्य को पा सकता है।
फेर न ह्वै है कपट सों, जो कीजै व्यापार
जैसे हाँडी काठ की, चढ़ै
न दूजी बार ।। (10)
व्याख्या- वृन्द जी कहते हैं कि छल और कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चल सकता। इनसे बार-बार व्यापार नहीं किया जा सकता। जैसे लकड़ी की हाँडी को एक ही बार आग पर चढ़ाया जा सकता है दूसरी बार नहीं। अतः छल और कपट का व्यवहार एक ही बार किया जा सकता है, बार-बार नहीं।
मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान
तनिक सीत जल सों मिटे, जैसे दूध उफान ।। (11)
व्याख्या-वृन्द जी कहते हैं कि मीठे वचन बोलने से बड़े से बड़े अभिमानी व्यक्ति का अभिमान भी दूर हो जाता है जैसे दूध में आए उफान को ज़रा से ठंडे जल के छींटे दूर कर देते हैं या शांत कर देते हैं उसी प्रकार मीठे वचनों से किसी के भी घमंड को शांत किया जा सकता है।
अरि छोटो गनिये नहीं, जाते होत बिगार ।
तृण समूह को तनिक में, जारत तनिक अंगार ।। ( 12 )
व्याख्या-वृन्द जी कहते हैं कि कभी भी अपने शत्रु को अपने से छोटा या कमज़ोर नहीं समझना चाहिए क्योंकि कई बार छोटी वस्तुएँ भी बहुत बड़ा बिगाड़ कर देती हैं। जिस प्रकार एक छोटा-सा अंगारा तिनकों के बहुत बड़े समूह को जला देता है। उसी प्रकार छोटा-सा शत्रु भी कई बार बहुत बड़ा नुकसान कर देता है।
अभ्यास
प्रश्न (1) रहीम जी के अनुसार सच्चे मित्र की क्या पहचान है?
उत्तर - रहीम जी के अनुसार सच्चा मित्र वही होता है जो मुसीबत के समय हमारा साथ देता है।
प्रश्न (2) ज्ञानी व्यक्ति संपत्ति का संचय किस लिए करते हैं?
उत्तर- ज्ञानी व्यक्ति संपत्ति का संचय दूसरों की भलाई के लिए करते हैं।
प्रश्न (3) बिहारी जी के अनुसार किसका साथ शोभा देता है?
उत्तर- बिहारी जी के अनुसार एक जैसी प्रकृति व स्वभाव वाले लोगों का साथ शोभा देता है।
प्रश्न (4) बिहारी जी ने मानव को आशावादी होने का क्या संदेश दिया है?
उत्तर - बिहारी जी ने भँवरे के
माध्यम से मनुष्य को निराश न हो कर आने वाले अच्छे दिनों के लिए आशावादी होने का संदेश दिया है।
प्रश्न (5) छल और कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चल सकता - इसके लिए वृन्द जी ने क्या उदाहरण दिया है?
उत्तर- छल और कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चल सकता इसके लिए वृन्द जी ने काठ अर्थात् लकड़ी की हाँडी की उदाहरण दी है कि जिस प्रकार लकड़ी की हाँडी को बार-बार आग पर नहीं चढ़ाया जा सकता उसी प्रकार छल कपट का व्यवहार भी बार-बार नहीं चल सकता।
प्रश्न (6) निरंतर अभ्यास से व्यक्ति कैसे योग्य बन जाता है? वृंद जी ने इसके लिए क्या उदाहरण दिया है?
उत्तर- निरंतर अभ्यास से व्यक्ति योग्य बन जाता है इसके लिए वृंद जी ने पत्थर और रस्सी की उदाहरण देते हुए कहा है कि जिस प्रकार बार-बार रस्सी घिसने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, उसी प्रकार बार-बार अभ्यास करते रहने से एक मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन जाता है।
प्रश्न (7) शत्रु को कमज़ोर या छोटा क्यों नहीं समझना चाहिए?
उत्तर- शत्रु को कमज़ोर या छोटा इसलिए नहीं समझना चाहिए क्योंकि कई बार छोटा-सा शत्रु भी बहुत बड़ा नुक्सान कर देता है, ठीक वैसे ही जैसे एक छोटा-सा अंगारा तिनकों के बहुत बड़े समूह को जला देता है।
(ख) भाषा-बोध
(1) निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें:
संपत्ति - विपत्ति उत्तम - अधम
हित - अहित आशा - निराशा
बैर - मित्रता/दोस्ती
(2) निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाएं:
प्रकृति - प्राकृतिक
विष - विषैला
बल - बलवान मूल - मौलिक
हित -
हितैषी व्यापार - व्यापारिक
(3) निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाएं:
लघु - लघुता
मादक - मादकता
एक - एकता मधुर - मधुरता
लेखन - विनोद कुमार (हिंदी शिक्षक)स.ह.स.बुल्लेपुर,लुधियाना
गुरप्रीत कौर(हिंदी शिक्षिका) स ह स लापरा लुधियाना
हरदमनदीप सिंह (हिंदी शिक्षक)स.ह.स.घुलाल लुधियाना
संशोधक – डॉ॰ राजन (हिंदी शिक्षक)लोहारका
कलां, अमृतसर