प्रस्तुत पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:-
मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई ।
तात,मात, भ्रात, बंधु , आपनो न कोई।
छांड़ि दई कुल की कानि, कहा करै कोई ।
संतन ढिग बैठि बैठि, लोक लाज खोई।
अँसुअन जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई, आनंद फल होई।
भगत देखि राजी भई , जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारौ अब मोही।
( I.) 'गिरिधर' से मीराबाई का अभिप्राय गोवर्धन पर्वत को धारण करने
वाले भगवान श्रीकृष्ण से है । (हाँ अथवा नहीं )
( ii.) मीरा ने श्री कृष्ण के अतिरिक्त सभी
रिश्ते नातों को अपना बताया है । (सही अथवा गलत)
( iii.)मीरा ने संतों की संगति में बैठकर…….
छोड़ दी। (रिक्त स्थान भरें) लोकलाज
( iv.)'कुल'शब्द का उपर्युक्त पद के आधार पर
सही अर्थ से मिलान करें।
कुल किनारा
सारा
वंश
( v. )क्या इस पद्यांश का केंद्रीय भाव मीराबाई
द्वारा श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानकर संसार
रूपी सागर से अपना उद्धार करने की प्रार्थना है? (हाँ अथवा
नहीं)
तैयारकर्ता:- पूजा रानी, हिन्दी अध्यापिका, स.स.स.स्कूल, बोड़ा,
होशियारपुर ।