पाठ - 6 (जड़ की मुस्कान ) कक्षा-दसवीं

 

पाठ - 6

जड़ की मुस्कान    कवि  : हरिवंश राय बच्चन

                                        

1) एक दिन तने ने भी कहा था,

जड़ ?

जड़ तो जड़ ही है ;

जीवन से सदा डरी रही है,

और यही है उसका सारा इतिहास

कि ज़मीन में मुँह गड़ाए पड़ी रही है

लेकिन मैं ज़मीन से ऊपर उठा,

बाहर निकला,

बढ़ा हूँ

मजबूत बना हूँ,

इसी से तो तना हूँ।

                                     प्रस्तुत पंक्तियां 'हरिवंश राय बच्चन जी' द्वारा रचित कविता 'जड़ की मुस्कान' में से ली गई हैं। 'जड़ की मुस्कान' कविता में बच्चन जी कहते हैं कि प्रगति करने पर लोग अक्सर अपने मूलभूत आधार को भूल जाते हैं और सारी प्रगति का श्रेय अपने आप को देते हैं।

व्याख्या- कवि कहता है कि एक दिन तने ने जड़ के बारे में कहा कि जड़ तो निर्जीव है। वह तो सदा जीवन से डरी रही है और यही उसका इतिहास है कि वह हमेशा ज़मीन में मुँह गड़ा कर पड़ी रही है लेकिन मैं ज़मीन से ऊपर उठकर बाहर निकला हूँ। बड़ा हुआ हूँ और मज़बूत बना हूँ। इसलिए तो मैं तना कहलाता हूँ।

2) एक दिन डालों ने भी कहा था,

तना ?

किस बात पर है तना ?

जहां बिठाल दिया गया था वहीं पर है बना ;

प्रगतिशील जगती में तिल भर नहीं डोला है,

खाया है, मोटाया है, सहलाया चोला है;

लेकिन हम तने से फूटीं,

           दिशा-दिशा में गईं

           ऊपर उठीं,

           नीचे आईं

           हर हवा के लिए दोल बनीं, लहराईं,

           इसी से तो डाल कहलाईं।

व्याख्या :- कवि कहता है कि एक दिन डालियों ने भी तने के बारे में कहा कि तना किस बात पर घमंड करता है? उसे हाँ पर बिठा दिया गया था, वह वहीं पर बैठा है। इस प्रगतिशील संसार में वह बिल्कुल भी गतिशील नहीं है। उसने केवल ज़मीन से खुराक लेकर मज़बूत, सुविधाभोगी शरीर बनाया है लेकिन हम तने से ही जन्म लेकर सभी दिशाओं में गईं। कभी ऊपर उठीं, कभी नीचे आईं और हवा में हिली-डुलीं, लहराईं इसीलिए तो हम डालियाँ कहलाईं।

3) एक दिन पत्तियों ने भी कहा था,

डाल?

डाल में क्या है कमाल?

माना वह झूमी, झुकी, डोली है

          ध्वनि-प्रधान दुनिया में

एक शब्द भी वह कभी बोली है?

लेकिन हम हर-हर स्वर करती हैं

मर्मर स्वर मर्मभरा भरती हैं,

           नूतन हर वर्ष हुई,

           पतझर में झर

           बहार-फूट फिर छहरती हैं,

           विथकित-चित पंथी का

           शाप-ताप हरतीं हैं।

व्याख्या :- कवि कहता है कि एक दिन पत्तियों ने भी डालियों के सम्बन्ध में कहा कि डालियों में भला क्या विशेषता है? यह बात सत्य है कि वे झूमती, झुकती और हिलती डुलती हैं लेकिन आवाज़ वाली इस दुनिया में क्या कभी उन्होंने एक शब्द भी बोला है? इसके विपरीत हम सदा हर-हर का शब्द बोलती रहती हैं। हमारे आपस में टकराने से वातावरण हमारी खड़खड़ाहट की आवाज़ से भर जाता है। हम हर वर्ष नया स्वरूप प्राप्त कर लेती हैं और पतझड़ में झड़ जाती हैं। बसंत ऋतु आने पर हम फिर से निकल आती हैं और डालियों पर छा जाती हैं। हम थके हुए मन वाले राहगीरों की परेशानियों तथा गर्मी को दूर करके उन्हें शांति प्रदान करती हैं।

4) एक दिन फूलों ने भी कहा था,

पत्तियाँ?

पत्तियों ने क्या किया?

संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया,

डालों के बल पर ही चल-चपल रही हैं,

हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं

लेकिन हम अपने से खुले, खिले, फूले हैं-

रंग लिए, रस लिए, पराग लिए-

हमारी यश-गंध दूर-दूर-दूर फैली है,

भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं,

हम पर बौरा हैं

सबकी सुन पाई है,

जड़ मुसकराई है!

व्याख्या- कवि कहता है कि एक दिन फूलों ने भी पत्तियों के सम्बन्ध में कहा कि पत्तियों ने भला किया ही क्या है अर्थात् पत्तियों में कोई विशेषता नहीं है। पत्तियों ने तो केवल अपनी संख्या के बल पर ही डालियों को ढक लिया है। वे डालियों के बल पर ही हिल-डुल रही हैं और हवाओं के कारण ही मचल रही हैं लेकिन हम फूल स्वयं ही रंग, रस, पराग लेकर खुले, खिले और फूले हैं। हमारे यश की सुगन्ध दूर-दूर तक फैली हुई है। भँवरे भी आकर हमारे गुणों का गान करते हैं। वे हम पर पागल-से होकर मंडराते रहते हैं। इन सब की बातों को सुनकर जड़ केवल मुस्कराती है क्योंकि वह जानती है कि यदि वह होती तो तना, डाल, पत्तियाँ और फूल भी होते। इन सब का अस्तित्व जड़ के कारण ही है।

शब्दार्थ-

तना हूँ   =  दृढ़ता पूर्वक खड़ा हूँ ; पंथी  = राहगीर, पथिक, मुसाफिर ; तना =  घमंड करना ; बौराए = मँडराए ;  जगती = संसार ;  प्रगतिशील =  प्रगति (तरक्की, विकास) कर रही ; डोला  = गतिशील ; सहलाया चोला = सुविधा भोगी शरीर ; दोल = हिलना ; ध्वनि प्रधान दुनिया  = शब्दों की दुनिया ; हर-हर स्वर  = सुरीली आवाज़ ;  विथकित  = थका हुआ ; चित्त = मन

अभ्यास

() विषय-बोध

1) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए-

1) प्र- एक दिन तने ने जड़ को क्या कहा?

उत्तर- एक दिन तने ने जड़ को कहा कि वह तो निर्जीव है और सदा जीवन से डरी रहती है।

2) प्र- जड़ का इतिहास क्या है?

उत्तर- जड़ का इतिहास यह है कि वह सदा ज़मीन के अंदर मुँह गड़ा कर पड़ी रहती है और कभी भी मिट्टी से बाहर नहीं निकलती।

3) प्र- डाली तने को हीन क्यों समझती है?

उत्तर- डाली तने को हीन इसलिए समझती है क्योंकि उसे हाँ बिठा दिया जाता है, वह वहीं बैठा रहता है। कभी भी गतिशील नहीं होता जबकि डाली लहराती रहती है

4) पत्तियाँ डाल की किस कमी की ओर संकेत करती हैं?

उत्तर- डाल पत्तियों की तरह हर-हर स्वर नहीं करती। वह कभी भी एक शब्द नहीं बोलती।

5) फूलों ने पत्तियों की चंचलता का आधार क्या बताया?

उत्तर- फूलों ने पत्तियों की चंचलता का आधार डालियों को बताया।

6) सबकी बातें सुनकर जड़ क्यों मुस्कराई?

उत्तर- सबकी बातें सुनकर जड़ इसलिए मुस्कराई क्योंकि उसे पता है कि यदि वह होती तो तना, डाल, पत्तियां और फूल भी होते। इन सब का अस्तित्व जड़ के कारण ही है।

() भाषा-बोध

1) निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें :-

  1)  जीवन           मृत्यु                2) जड़              चेतन

  3) मज़बूत         कमज़ोर              4) ऊपर            नीचे

2) निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाएं :-

    1) इतिहास              ऐतिहासिक                    2) दिन                 दैनिक

    3) वर्ष                  वार्षिक                         4) रंग                   रंगीन

    5) रस                  रसीला

3) निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें :-

1) प्रगति         तरक्की, विकास                           2) हवा           वायु ,समीर

3) ध्वनि         नाद, स्वर                                  4) फूल          पुष्प, सुमन

5) भ्रमर         भँवरा, भौंरा

4) निम्नलिखित के अनेकार्थी शब्द लिखें :-

1) जड़            मूल, मूर्ख                               2) तना           घमण्ड करना, पेड़ का तना

3) डाल          शाखा, टहनी                             4) डोली         पालकी, डोलना

5) बोली         भाषा, बोलना

लेखन   - विनोद कुमार (हिंदी शिक्षक)स.ह.स.बुल्लेपुर,लुधियाना

         गुरप्रीत कौर(हिंदी शिक्षिका) स ह स लापरा लुधियाना

संशोधक – डॉ॰ राजन (हिंदी शिक्षक)लोहारका कलां, अमृतसर