कक्षा दसवीं अभ्यास शीट -63
अनुच्छेद-लेखन
मेरी
दिनचर्या
दिनचर्या से अभिप्राय है- नित्य किए जाने वाले काम। इन
कामों को योजनाबद्ध तरीके से करना चाहिए। मैंने अपनी पढ़ाई, व्यायाम, खेलकूद, मनोरंजन
व विश्राम आदि के आधार पर अपनी दिनचर्या बनायी हुई है। इसी के आधार पर मैं दिनभर काम
करता हूँ। मेरा स्कूल सुबह आठ बजे लगता है, किन्तु मैं सुबह पाँच बजे उठकर पहले अपने
पिता जी के साथ सैर को जाता हूँ। कुछ व्यायाम भी करता हूँ। घर आकर नहा-धोकर थोड़ी
देर पढ़ता हूँ क्योंकि इस समय वातावरण में शान्ति होती है तथा दिमाग ताज़ा होता है।
नाश्ता करके मैं सुबह स्कूल चला जाता हूँ।
स्कूल से छुट्टी के बाद खाना खाकर मैं पहले
थोड़ी देर आराम करता हूँ। मुझे फुटबॉल खेलना बहुत अच्छा लगता है। इसलिए मैं शाम को
एक घंटा फुटबॉल खेलता हूँ। मैं खेलने के बाद घर आकर स्कूल से मिले होमवर्क को करता
हूँ। होमवर्क के बाद मैं कठिन विषयों का अभ्यास भी करता हूँ। इसके बाद लगभग आधा घंटा टेलीविज़न पर
अपना मनपसंद चैनल देखता हूँ। फिर खाना खाकर थोड़ी देर सैर भी करता हूँ। तत्पश्चात सरल
विषयों का भी अध्ययन करता हूँ। मैं रात को सोने से पहले प्रभु का स्मरण करता हूँ और
सो जाता हूँ। इस दिनचर्या से मेरा जीवन नियमित हो गया है।
मेरी
पहली हवाई यात्रा
इस बार गर्मियों की छुट्टियों में मेरे माता-पिता ने श्रीनगर
जाने का प्रोग्राम बनाया। मेरे पिता जी ने इंटरनेट के माध्यम से ‘गो एयर' कंपनी की
टिकटें बुक करवा दीं। यात्रा के निर्धारित दिन हम टैक्सी से हवाई अड्डे पर पहुँच गए।
हम पूछताछ करके 'गो एयर' कंपनी के काउंटर पर पहुँचे। हमनें अपना सामान चैक करवाया और
उन्होंने बताया कि हमारा वह सामान सीधा जहाज़ में रखवा दिया जाएगा। हमें अपने सामान
की रसीद और यात्री पास दे दिए गए। सामान जमा करवाकर हम उस ओर बढ़े जहाँ व्यक्तियों
के हैंडबैग, मोबाइल, लैपटॉप, कैमरा आदि की चैकिंग की जा रही थी। कम्प्यूटर तकनीक के
माध्यम से सामान की चैकिंग देखकर मैं दंग रह गई। पहली हवाई यात्रा का आनन्द उठाने के
लिए मैं उत्सुक थी। इसके बाद हम निर्धारित स्थान पर पहुँच गए, हमारी टिकटें चैक हुईं
और हम जहाज़ में जा बैठे। जहाज़ में विमान परिचारिकाओं ने हमारा स्वागत किया, हमें
सीट बैल्ट बाँधने की हिदायतें दीं और कुछ ही पलों में जहाज़ ने उड़ान भरी और देखते
ही देखते वह बादलों के बीच था। इतनी सुखद व रोमांचकारी यात्रा मेरे लिए अविस्मरणीय
रहेगी।
मेरे
जीवन का लक्ष्य
मैं अब दसवीं कक्षा में पढ़ रहा हूँ। मैंने अपने जीवन का
लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। मैं बड़ा होकर एक सैनिक बनकर देश की सेवा करना चाहता हूँ।
प्राय: अखबारों, रेडियो व टेलीविज़न के माध्यम से पाकिस्तान की ओर से भारत में आतंक
फैलाने की घटनाएँ पढ़ने-सुनने को मिलती हैं। बांग्लादेश से भी भारत में घुसपैठ होती
रहती है। चीन ने पहले ही भारत का एक बड़ा भू-भाग दबाकर रखा है और अब भी उसकी नीयत भारतीय
ज़मीन पर कब्ज़ा करने की रहती है। हमने अंग्रेज़ों से एक लम्बी गुलामी के बाद बड़ी
कुर्बानियाँ देकर आज़ादी प्राप्त की है। इसे कायम रखना प्रत्येक भारतवासी का कर्त्तव्य
है। मैं अब कभी दोबारा भारत पर कोई भी आँच नहीं आने दूँगा। मुझे खुशी है कि मेरे जीवन
के लक्ष्य निर्धारण में मेरा परिवार मेरे साथ है। मेरे मामा जी भी लम्बे समय से फौज
में अफसर हैं। उन्होंने भी मुझे काफी प्रेरित किया है। उन्होंने अन्य विषयों के साथ-साथ
विशेष रूप से गणित और विज्ञान में अच्छे अंक प्राप्त करने, शरीर को स्वस्थ व फुर्तीला
रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करने तथा जीवन में निडरता व अनुशासन पर बल देने
की बात कही है। निस्संदेह रास्ता कठिन है किन्तु मुझे विश्वास है कि आत्मविश्वास, दृढ़
इच्छाशक्ति व मेहनत के सहारे मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा।
हम
घर में सहयोग कैसे करें
जीवन में सहयोग का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमें सब
के साथ सहयोग करना चाहिए। इसका प्रारम्भ घर से करना चाहिए। हमें घर में मिलजुलकर रहना
चाहिए। पिता जी मेहनत से रोज़ी-रोटी कमाकर परिवार का पालन पोषण करते हैं। माँ घर के
कार्यों जैसे-साफ़-सफ़ाई, खाना बनाना, बर्तन-कपड़े
धोना आदि सभी काम करती हैं। इसलिए हमें भी घर के अन्य छोटे-मोटे कार्यों में माता-पिता
का हाथ बंटाना चाहिए। हम बाज़ार से दूध, फल, सब्ज़ियाँ आदि लाकर घर में सहयोग दे सकते
है। बिजली, पानी और टेलीफ़ोन का बिल समय पर जमा करवा सकते हैं। घर में उचित जगह पर
चीज़ों को रखकर, खाना परोसकर, खाने के बाद खाने के टेबल से बर्तन उठाकर रसोईघर में
रखकर, छोटे भाई-बहनों को पढ़ाकर हम घर में एक दूसरे को सहयोग दे सकते हैं। घर के छोटे
सदस्य बगीचे में लगे पौधों को पानी देकर, इधर-उधर कागज़ न फेंककर तथा खिलौने आदि से
खेलने के बाद उन्हें समेटकर सहयोग दे सकते हैं। घर में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी
दवाई का प्रबन्ध करके तथा उसकी सेवा करके भी हम सहयोग कर सकते हैं। इस प्रकार आपसी
सहयोग से घर खुशहाल बन जाएगा।
गाँव
का खेल मेला
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हमारे गाँव किशनपुरा में वार्षिक
खेल मेले का आयोजन किया गया। इन खेलों में ऊँची कूद, साइकिल दौड़, 100 मीटर, 200 मीटर,
कबड्डी, कुश्ती तथा बैलगाड़ियों की दौड़ को शामिल किया गया। सारे गाँव को दुल्हन की
तरह सजाया गया था। बच्चे, नौजवान, बूढ़े तथा स्त्रियाँ - सभी गाँव के खेल मेले को बड़े
उत्साह से देखने पहुँचे। यह खेल मेला दो दिन तक चला। खेल का उद्घाटन गाँव के सरपंच
द्वारा किया गया। उन्होंने खिलाड़ियों से अपील की कि वे लग्न तथा मेहनत से खेलें तथा
भविष्य में देश का नाम रोशन करें। पहले दिन ऊँची-कूद, साइकिल दौड़, 100 तथा 200 मीटर
खेलों का आयोजन किया गया। दूसरे दिन पहले कुश्ती, कबड्डी तथा साइकिल दौड़ का आयोजन
किया गया। कुश्ती व कबड्डी के खेल ने सभी गाँववासियों का मनोरंजन किया। अंत में बैलगाड़ियों
की दौड़ ने भी सभी का खूब मनोरंजन किया। इसके बाद 'भंगड़े' ने लोगों को नाचने पर मज़बूर
कर दिया। अतिथि द्वारा जीतने वाले खिलाड़ियों को इनाम बाँटे गये। सचमुच, हमारे गाँव
का खेल मेला बहुत ही रोचक तथा रोमाँचकारी होता है, जिसकी लोगों को साल भर प्रतीक्षा
रहती है।
परीक्षा
में अच्छे अंक पाना ही सफलता का मापदंड नहीं
यह ठीक है कि परीक्षा में अच्छे अंक पाने वाले का सभी जगह
सम्मान होता है। उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और अच्छे भविष्य के लिए उसका रास्ता आसान
हो जाता है। किन्तु सिर्फ यही सफलता का मापदंड नहीं हैं। कम अंक प्राप्त करके भी समाज
में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया जा सकता है। अकादमिक क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्र
भी हैं। अपनी रुचियों और क्षमताओं को पहचानकर अपने मनपसंद क्षेत्र में परिश्रम व दृढ़निश्चय
के सहारे कूद पड़ने पर अपार सफलता मिल सकती है। स्कूल स्तर पर औसत दर्जे के समझे जाने
वाले वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने बाद में अद्भुत आविष्कार किए। मुंशी प्रेमचंद ने दसवीं
कक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की और दो बार फेल होने के बाद इंटरमीडिएट कक्षा पास की।
इसके बावजूद भी पूरे विश्व में वे हिंदी के उपन्यास सम्राट के रूप में जाने जाते हैं।
सचिन तेंदुलकर, महेन्द्र सिंह धोनी क्रिकेट में अच्छे प्रदर्शन की वजह से जाने जाते
हैं न कि अकादमिक तौर पर। इसी तरह अनेक स्वतंत्रता सेनानी, खिलाड़ी, संगीतज्ञ, गायक,
अभिनेता, राजनीतिज्ञ, व्यापारी आदि हुए हैं जिन्होंने अकादमिक तौर पर नहीं अपितु अपने-अपने
क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के बल पर सफलता के शिखर को छुआ है। अत: अंकों की तरफ ध्यान
न देकर आशावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
भ्रमणः
ज्ञान वृद्धि का साधन
पाठ्य-पुस्तकें, अखबारें, मैगज़ीनें पढ़कर ज्ञानार्जन किया
जा सकता है। रेडियो को सुनकर व टेलीविज़न पर देश-विदेश की झलकियों के बारे में सुनकर-देखकर
ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु भ्रमण आनन्द के साथ-साथ ज्ञान वृद्धि का अनुपम
साधन है। भ्रमण का महत्त्व इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पुस्तकों आदि में जो ज्ञान
दिया गया है वह इतिहासकारों, विद्वानों, वैज्ञानिकों, खोजकर्त्ताओं व महापुरुषों के
भ्रमण का ही परिणाम है। ऐतिहासिक व धार्मिक स्थानों का भ्रमण करके जो मन को शांति,
सौन्दर्यानुभूति व ज्ञान मिलता है वह केवल किताबें पढ़ने पर नहीं हो सकता। इसी प्रकार
ऊँचे-ऊँचे पर्वतों, नदियों, झीलों, झरनों, वनों, समुद्रों आदि पर भ्रमण करके ही प्राकृतिक
सुंदरता का आनन्द व ज्ञान लिया जा सकता है। ऐसा ज्ञान सुनने-पढ़ने की अपेक्षा अधिक
जीवंत होता है। भ्रमण करने से आत्मविश्वास बढ़ता है। अन्य स्थानों पर भ्रमण की उत्सुकता
बढ़ती है। उत्सुकता तो ज्ञान- -वृद्धि की मुख्य सीढ़ी है। निस्संदेह, भ्रमण के बिना
तो ज्ञान अधूरा ही कहा जाएगा।
प्रकृति
का वरदान: पेड़-पौधे
ईश्वर ने सम्पूर्ण जगत के प्राणियों को अनेक अमूल्य उपहार
दिए हैं जिनमें से पेड़-पौधे मुख्य हैं। सचमुच, ये हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं
हैं। इनका हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पेड़ दुर्गन्ध लेते हैं और सुगन्ध
लौटाते हैं अर्थात् ये कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करके हमें ऑक्सीजन देते हैं। ये सूर्य
की गर्मी को स्वयं सहन करके हमें छाया प्रदान करते हैं, इसलिए ये परोपकारी हैं। इनसे
हमें फल और फूल, ईंधन, गोंद, रबड़, फर्नीचर की लकड़ी, कागज़ आदि मिलते हैं। पेड़ पौधों
से वातावरण शुद्ध बनता है तथा भूमि की उर्वरता बढ़ती है क्योंकि इनकी पत्तियाँ खाद
बनाने के काम आती हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी इनकी अहम भूमिका है। पेड़ों के
पत्तों, जड़ों, फलों, फूलों तथा छाल आदि से कई प्रकार की दवाइयाँ बनती हैं। धार्मिक
दृष्टि से तो पेड़ों का बहुत महत्त्व है। ऐसे भी कई पेड़ पौधे हैं जिन्हें पूजा जाता
है जैसे-तुलसी, पीपल, केला, बरगद, आम आदि। पेड़ों का सम्बन्ध रोज़गार से भी जुड़ा है।
पेड़ों से लोग टोकरियाँ, बैग, चटाइयाँ, पेंसिलें, फर्नीचर आदि बनाकर अपना रोज़गार करते
हैं। अत: पेड़-पौधों का इतना महत्त्व होने पर इनका संरक्षण करना चाहिए। ये हमें लाभ
ही देंगे। कहा भी है-पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ।
अपने
नये घर में प्रवेश
हम कुछ समय पहले किराए के मकान में रह रहे थे, किन्तु मेरे
पिता जी ने एक प्लॉट खरीद लिया था। हम वहाँ पिछले डेढ़ साल से नया घर बनवाने में जुटे
थे। पिछले सप्ताह नया घर बनकर तैयार हो गया था। नए घर के अनुरूप नए पर्दे, नया फर्नीचर
खरीदना स्वाभाविक ही था। मेरे पिता जी ने मेरे और मेरी बहन के लिए पढ़ाई करने का एक
कमरा अलग से बनवाया था। उन्होंने हमारे पढ़ने वाले कमरे के लिए स्ट्डी टेबल, कुर्सियाँ
और दो छोटी-छोटी अलमारियाँ बनवायी थीं। उस घर में प्रवेश करने के लिए घर का प्रत्येक
सदस्य उत्सुक था। नए स्टडी रूम की बात सोचकर तो मैं रोमांचित हो जाता था। रविवार को
गृह-प्रवेश था। हमने अपने सभी रिश्तेदारों, मित्रों को गृह प्रवेश के अवसर पर सादर
आमंत्रित किया था। इस अवसर पर पूजा का विधान होता है अतः ठीक आठ बजे पूजा शुरू हो गयी।
पूजा में सभी शामिल हुए। पिता जी ने पूजा के बाद दोपहर के भोजन का बढ़िया प्रबन्ध किया
हुआ था। सभी ने भोजन किया और हमें नए घर में प्रवेश पर बहुत-बहुत बधाइयाँ दीं। हमने
सभी का धन्यवाद किया। सचमुच, नए घर में प्रवेश करके सारे परिवार की खुशी का ठिकाना
न था।
कैरियर
चुनाव में स्वमूल्यांकन
किसी भी किशोर के लिए कैरियर का चुनाव करना एक चुनौती होती
है। दसवीं कक्षा में रहते या दसवीं कक्षा के तुरन्त बाद कैरियर का चुनाव करना आज की
माँग है। वैसे तो इससे भी पहले ही कुछ सजग विद्यार्थी यह तय कर लेते हैं कि उन्हें
जीवन में किस दिशा की ओर जाना है। इसके लिए किशोर को अपना मूल्यांकन स्वयं करना होगा।
सबसे पहले उसे विभिन्न तरह के कैरियर की जानकारी रखनी होगी तभी वह उनमें से अपनी क्षमता,
रुचि और आर्थिक स्थिति आदि के आधार पर कैरियर का चुनाव कर सकेगा। इसके लिए समाचार-पत्रों,
मैगज़ीनों, रेडियो, टेलीविज़न से पढ़-सुन- देखकर अथवा कैरियर प्रदर्शनियों में जाकर
अपना ज्ञान बढ़ा सकता है। उसे उन गतिविधियों की ओर ध्यान बनाए रखना होगा जिनमें वह
अधिक रुचि रखता है। क्या पता कौन-सी गतिविधि उसे उसकी मंजिल तक ले जाए। उसे अपना ध्येय,
ध्येय को प्राप्त करने की योजना, समय आदि की तरफ भी बराबर देखना होगा। उसे अपनी कमज़ोरियों
से निपटने की हर संभव कोशिश करनी होगी तथा खाली समय का सदुपयोग करना होगा। अपने स्वास्थ्य
का ध्यान रखते हुए, अपने आत्मविश्वास को बनाए रखते हुए उसे सही कैरियर का चुनाव करना
होगा तभी वह अपने जीवन को सुखकर बना सकता है।
विद्यार्थी
और अनुशासन
अनु+शासन के मेल से बना है - अनुशासन । 'अनु' अर्थात् पीछे या साथ और शासन का अर्थ है-नियम, विधि अथवा नियंत्रण आदि। अतः
अनुशासन का अर्थ है शासन के बनाए नियमों पर चलना। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बहुत
महत्त्व है। विद्यार्थी जीवन व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन की नींव है। आज के विद्यार्थी
कल के नेता हैं। विद्यार्थी को श्रेणियों में पास होने पर डिग्रियाँ देने से ही शिक्षा
पूर्ण नहीं हो जाती अपितु इनके साथ-साथ विद्यार्थी को अनुशासित बनाना भी शिक्षा का
उद्देश्य है। उनमें अनुशासन को इस तरह विकसित करना चाहिए कि वे उसे जीवन का अभिन्न
अंग मानें। विद्यालय के नियमों का पालन करना, कक्षा में शांतिपूर्वक बैठकर अध्यापकों
द्वारा पढ़ाए जा रहे पाठ को ध्यानपूर्वक सुनना, समय का सदुपयोग करना, पुस्तकालय में
चुपचाप बैठकर पढ़ना आदि बातें विद्यार्थी के अनुशासन पालन के अंतर्गत आती हैं। विद्यार्थी
को कभी भी अनुशासनहीनता का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए क्योंकि एक अनुशासित विद्यार्थी
ही एक अच्छा नागरिक बनकर देश के विकास में अपना योगदान दे सकता है।
कोचिंग
संस्थानों का बढ़ता जंजाल
आज के दौर में इंजीनियरिंग, मेडिकल, सेना, कानून, होटल
मैनेजमैंट, प्रशासनिक सेवाओं आदि कोर्सों में प्रवेश पाने हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं
का आयोजन किया जाता है। इन परीक्षाओं में निर्धारित सीटों की उपलब्धता को देखते हुए
मैरिट के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। इन परीक्षाओं की तैयारी करवाने के लिए आज जगह-जगह
कोचिंग संस्थानों की बाढ़ आ गयी है। ये संस्थान हज़ारों लाखों की फीस ऐंठकर विद्यार्थियों
को सातवीं-आठवीं कक्षा से ही पाठ्यक्रम की परीक्षा के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं
की भी कोचिंग देते हैं। इससे विद्यार्थी पर बोझ बढ़ता है। यदि देखा जाए तो जब ये संस्थान
नहीं थे तब भी विद्यार्थी अपने अध्यापकों से शिक्षा ग्रहण करके व स्वाध्ययन से उपर्युक्त
क्षेत्रों में प्रवेश पाते थे। आज ऐसे उदाहरण भी सामने आते हैं जिनमें अभावग्रस्त परिवारों
के विद्यार्थी भी इन संस्थानों में कोचिंग लिए बिना प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छी
मैरिट प्राप्त करते हैं। हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रम व
प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों में अधिक अंतर नहीं होना चाहिए। संभवत: स्कूलों/कॉलेजों
में ही इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
मैंने
लोहड़ी का त्योहार कैसे मनाया ?
इस वर्ष मैंने अपने मित्रों के साथ मिलकर लोहड़ी का त्योहार
मनाया। हमने सभी मुहल्ले वालों को इकट्ठे लोहड़ी मनाने के लिए मनाया। हरेक घर से सौ-सौ
रुपये इकट्ठे किए गए। हमने लोहड़ी से तीन-चार दिन पहले ही लोहड़ी की तैयारियाँ शुरू
कर दीं। सभी ने कोई न कोई ज़िम्मेवारी ली। कुछ मित्र लकड़ियाँ और उपले खरीदने चले गये
तो कुछ तिल, रेवड़ियाँ, गचक, मूँगफली खरीदने चले गये। मैंने सभी के लिए कॉफी का प्रबन्ध
किया। लोहड़ी वाले दिन शाम को लकड़ियों का ढेर बनाकर उनमें अग्नि प्रज्वलित की गयी।
सभी ने उन जलती हुई लकड़ियों की परिक्रमा की तथा माथा टेका। चारों ओर एकता तथा भाईचारे
का वातावरण बन गया था। हमने सभी को मूँगफली, गचक, रेवड़ियाँ और कॉफी दी। इतने में ढोल
वाले ने ढोल बजाना शुरू कर दिया। सभी लड़कों ने भँगड़ा डाला। मुहल्ले के लोग हमारे
द्वारा किए गए प्रबन्ध से बहुत खुश थे। हमें लोगों ने अगले वर्ष फिर इसी तरह लोहड़ी
मनाने के लिए आग्रह किया। इस तरह सभी हँसी-खुशी अपने-अपने घरों को लौट गए। सचमुच, मुझे
अपने मुहल्ले के सभी लोगों द्वारा एक साथ मिलकर लोहड़ी मनाना आज भी याद है।
जनसंचार
के माध्यम
प्रत्यक्ष रूप से अपनी बात दूसरों को कहने की अपेक्षा समाज
के हर वर्ग के साथ संवाद स्थापित करना जन सम्पर्क या जनसंचार कहलाता है। प्राचीन समय
में विचारों, सूचनाओं व आदेशों को शिलालेख, भोजपत्र, मुनादी आदि के द्वारा लोगों तक
पहुँचाया जाता था। लाउडस्पीकर के माध्यम से भी संदेश पहुँचाया जाता रहा है। समय के
साथ-साथ तकनीकी विकास होने पर संचार के साधन भी आधुनिक हो गए हैं। आज समाचार पत्र,
मैगज़ीनें, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा, इंटरनेट तथा मोबाइल जनसंचार के सशक्त माध्यम
हैं। इनका शिक्षा, कला, व्यवसाय, मनोरंजन, व्यापार, राजनीति आदि क्षेत्रों में अद्भुत
योगदान है। समाज के प्रत्येक वर्ग, विशेष रूप से युवा वर्ग, पर तो इसका बहुत गहरा प्रभाव
पड़ा है। उसके रहन-सहन, बोलचाल, वेशभूषा तथा व्यवहार आदि पर भी गहरा असर पड़ा है। किन्तु
समाज पर इनकी अधिकता व नई-नई तकनीकों के कारण मानव की मानसिक शाँति को भी भंग किया
है। इसके अतिरिक्त ड्रग्स, हिंसा, हत्याएँ व साइबर क्राइम भी बढ़ रहे हैं। अब समाज
को तय करना है कि वह इनका सदुपयोग करेगा अथवा दुरुपयोग करेगा।
भ्रूण-हत्या
: एक जघन्य अपराध
भारत पूरे विश्व में अहिंसा, शिक्षा, शांति, धर्म और सद्भावना
के लिए जाना जाता है किन्तु कन्या-भ्रूण-हत्या जैसे अनैतिक एवं अमानवीय कुकृत्य से
इस देश की महानता खंडित हुई है। विज्ञान की अल्ट्रासाउंड तकनीक ने जन्म से पूर्व ही
भ्रूण-लिंग की जानकारी देकर कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया है। खेद की बात तो यह
है कि अशिक्षित व गरीब लोगों के साथ-साथ शिक्षित व सम्पन्न वर्ग भी इस कुकृत्य में
संलिप्त है। आज भी अधिकांश लोग कन्या के जन्म पर शोक मनाते हैं या उसके जन्म से संतुष्ट
नहीं होते हैं। एक तरफ़ तो लोग नवरात्रों में बालिकाओं का पूजन करते हैं पर दूसरी ओर कन्या-भ्रूण-हत्या
को अंजाम देकर दोहरे व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। लोगों को यही लगता है कि पुत्र ही
वंश को आगे बढ़ाता है और बुढ़ापे का सहारा है जबकि सच यह है कि लड़की शादी के बाद दोनों
कुलों को रोशन करती है। भ्रूण-हत्या अनैतिक ही नहीं अपितु एक अपराध भी है। इस अपराध
से निपटने के लिए सरकार ने सख्त कानून भी बनाए हैं लेकिन केवल कानून बना देना ही समस्या
का समाधान नहीं है। लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी जो कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में
मील का पत्थर साबित होगी।