सब कुछ स्वीकार करना जरुरी नहीं
एक बार गौतम बुद्ध किसी गांव से गुजर रहे थे। उस गांव के लोगों को
गौतम बुद्ध के बारे में गलत धारणा थी जिस कारण वे उन्हें अपना दुश्मन मानते थे। जब
गौतम बुध गांव में आए तो गांव वालों ने उन्हें भला बुरा कहा और बद दुआएं देने लगे।
गौतम बुद्ध गांव वालों की बातें शांति से सुनते रहे और जब गांव वाले
बोलते बोलते थक गए तो बुद्ध ने कहा, “अगर
आप सभी की बातें समाप्त हो गई हो तो मैं प्रस्थान करूं।”
बुद्ध की बात सुनकर गांव वालों को आश्चर्य हुआ। उनमें से एक व्यक्ति
ने कहा, “हमने तुम्हारी तारीफ नहीं की है। हम
तुम्हें बस बद दुआएं दे रहे हैं । क्या तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता?”
बुद्ध ने कहा,
“जाओ मैं आपकी
गालियां नहीं लेता। आपके द्वारा गालियां देने से क्या होता है जब तक मैं गालियां
स्वीकार नहीं करता इसका कोई परिणाम नहीं होगा। कुछ दिन पहले एक व्यक्ति ने मुझे
कुछ उपहार दिया था, लेकिन मैंने उस उपहार को लेने से मना
कर दिया तो वह व्यक्ति उपहार को वापस ले गया। जब मैं लूंगा ही नहीं तो कोई मुझे
कैसे दे पाएगा।”
बुद्ध ने बड़ी विनम्रता से पूछा, ” अगर
मैंने उपहार नहीं लिया तो उपहार देने वाले व्यक्ति ने क्या किया होगा? “
भीड़ में से किसी ने कहा, ” उपहार
को व्यक्ति ने अपने पास रख लिया होगा।”
बुद्ध ने कहा,
“मुझे आप सब पर
बड़ी दया आती है क्योंकि मैं आपकी इन गालियों को लेने में असमर्थ हूं और इसीलिए
आपकी यह गालियां आपके पास ही रह गई है।”